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आंगनवाड़ी और मिड-डे मील से बच्चों का भविष्य सुरक्षित

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स्वास्थ्य-

भारत में बाल पोषण संकट एक ऐसी समस्या है, जिसे नज़रअंदाज़ करना समाज और राष्ट्र दोनों के लिए घातक साबित हो सकता है। लाखों बच्चे आज भी ऐसे परिवेश में जन्म लेते हैं, जहां उन्हें पर्याप्त और संतुलित आहार नहीं मिल पाता। पोषण की कमी केवल शारीरिक कुपोषण ही नहीं लाती, बल्कि मानसिक विकास, शिक्षा और जीवन की गुणवत्ता पर भी गहरा असर डालती है। खासकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्थिति और अधिक गंभीर है, जहां गरीबी, सामाजिक असमानताएँ और संसाधनों की कमी मिलकर बच्चों के पोषण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। ऐसे में आंगनवाड़ी और स्कूलों के माध्यम से मिलने वाले मिड-डे मील प्रोग्राम्स ने बच्चों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आंगनवाड़ी केंद्र, जो कि भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की पहल है, ग्रामीण और शहरी वंचित इलाकों में बच्चों और माताओं तक पोषण और स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने का मुख्य माध्यम हैं। ये केंद्र बच्चों को केवल पोषण ही नहीं देते, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा, टीकाकरण, और स्वास्थ्य जांच की सुविधाएँ भी उपलब्ध कराते हैं। शिशुओं और नन्हे बच्चों के लिए यहां दिया जाने वाला पूरक पोषण, जैसे कि पोषण मिश्रित भोजन और कैलोरी-समृद्ध आहार, उनकी शारीरिक वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, माताओं को संतुलित आहार और शिशु पोषण के बारे में जागरूक करना भी आंगनवाड़ी कार्यक्रम का हिस्सा है, जिससे बच्चे जन्म से ही उचित पोषण प्राप्त कर सकें। मिड-डे मील योजना ने भी भारतीय स्कूल प्रणाली में पोषण संकट को कम करने में निर्णायक भूमिका निभाई है। स्कूलों में बच्चों को प्रतिदिन पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना न केवल कुपोषण को कम करता है, बल्कि बच्चों की शिक्षा में भागीदारी और उपस्थिति को भी बढ़ाता है। यह योजना गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों को प्रतिदिन कम से कम एक संतुलित भोजन सुनिश्चित करती है, जिससे बच्चों की ऊर्जा स्तर में सुधार आता है और वे स्कूल में पढ़ाई में अधिक सक्रिय हो पाते हैं। विशेष रूप से लड़कियों के लिए, यह योजना स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति को कम करने और शिक्षा की दिशा में उन्हें प्रेरित करने में सहायक साबित होती है। हालांकि, इन कार्यक्रमों की सफलता केवल उनकी मौजूदगी से नहीं, बल्कि उनकी प्रभावी कार्यान्वयन और गुणवत्ता से जुड़ी है। कई बार आंगनवाड़ी और मिड-डे मील केंद्रों में भोजन की गुणवत्ता और पोषण मानकों की कमी बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा, अधिकारियों की निगरानी, कर्मचारियों का प्रशिक्षण और स्थानीय समुदाय की भागीदारी भी इन योजनाओं की प्रभावशीलता के लिए आवश्यक हैं। जब तक यह सुनिश्चित नहीं किया जाता कि भोजन समय पर, स्वच्छ और पोषक तत्वों से भरपूर हो, तब तक पोषण संकट पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकता।आंगनवाड़ी और मिड-डे मील कार्यक्रम केवल बच्चों को आहार ही नहीं देते, बल्कि उन्हें सामाजिक सुरक्षा और शिक्षा का भी अनुभव कराते हैं। बच्चों की स्कूल में नियमित उपस्थिति और सीखने की क्षमता में सुधार का प्रत्यक्ष संबंध इस पोषण से जुड़ा है। पोषणयुक्त भोजन बच्चों की मानसिक सक्रियता और स्मृति शक्ति को भी बढ़ाता है, जिससे उनकी संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार होता है। यह दृष्टि से देखा जाए तो, पोषण कार्यक्रम केवल स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि बच्चों के समग्र विकास और भविष्य की मानव पूंजी निर्माण का आधार भी है।आंगनवाड़ी केंद्र और मिड-डे मील योजना सामाजिक समानता और गरीब बच्चों के जीवन में अवसर पैदा करने में भी मदद करती हैं। गरीब परिवारों के लिए यह भोजन का भरोसेमंद स्रोत है, जो उन्हें बच्चों के पोषण की चिंता से मुक्त करता है।

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डॉ साकेत कुमार पाठक

इसके साथ ही, इन कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों को पोषण, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जाता है, जो उन्हें जीवन भर स्वस्थ आदतों की ओर प्रेरित करता है। समाज में लिंग आधारित असमानता को कम करने में भी यह योजना योगदान देती है, क्योंकि लड़कियों को पोषण और शिक्षा के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं। हालांकि, चुनौतियाँ अभी भी बरकरार हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनवाड़ी केंद्रों की संख्या पर्याप्त नहीं है और कई बार कर्मचारियों की कमी और प्रशिक्षण की कमी कार्यक्रम की प्रभावशीलता को कम कर देती है। मिड-डे मील में भी कभी-कभी भोजन की गुणवत्ता, समय पर वितरण और स्वच्छता की समस्या सामने आती है। इसलिए, सरकार और समुदाय को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक बच्चा, चाहे वह किसी भी क्षेत्र या जाति का हो, संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन प्राप्त कर सके।सफलता की कुंजी स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी में निहित है। आंगनवाड़ी और स्कूल के शिक्षक, अभिभावक और पंचायत प्रतिनिधि मिलकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चे नियमित रूप से पोषण प्राप्त करें और इन कार्यक्रमों की निगरानी की जाए। इसके साथ ही, पोषण शिक्षा और स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देना भी आवश्यक है ताकि बच्चे और परिवार दोनों पोषण के महत्व को समझें और इसे जीवन शैली का हिस्सा बनाएं। बाल पोषण संकट को समाप्त करना केवल आंगनवाड़ी और मिड-डे मील जैसी योजनाओं पर निर्भर नहीं है, बल्कि इसके लिए समाज, सरकार और परिवारों को मिलकर निरंतर प्रयास करना होगा। जब तक प्रत्येक बच्चा संतुलित आहार, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की सुविधा से लाभान्वित नहीं होगा, तब तक पोषण संकट पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकता। आंगनवाड़ी और मिड-डे मील ने बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इसकी पूरी क्षमता तभी पूरी हो पाएगी जब इन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन प्रभावी, गुणवत्ता युक्त और समाज के हर बच्चे तक पहुँचने वाला हो। इस तरह, बाल पोषण और शिक्षा के क्षेत्र में यह दो कार्यक्रम न केवल बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास का आधार हैं, बल्कि समाज में समान अवसर और जीवन की गुणवत्ता सुधारने का भी एक मजबूत स्तंभ हैं। यदि हम इन्हें सशक्त बनाएँ, उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करें और समुदाय को इस प्रयास में शामिल करें, तो आने वाले वर्षों में भारत के बच्चे स्वस्थ, सशक्त और शिक्षित नागरिक बनकर राष्ट्र की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

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राज्य प्रमुख
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हंसराज चौरसिया स्वतंत्र स्तंभकार और पत्रकार हैं, जो 2017 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत स्वतंत्र प्रभात से की और वर्तमान में झारखंड दर्शन, खबर मन्त्र, स्वतंत्र प्रभात, अमर भास्कर, झारखंड न्यूज़24 और क्राफ्ट समाचार में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साथ ही झारखंड न्यूज़24 में राज्य प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (2024–26) कर रहे हंसराज का मानना है कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ को व्यवस्था तक पहुंचाने का सार्वजनिक दायित्व है। उन्होंने राजनीतिक संवाद और मीडिया प्रचार में भी अनुभव हासिल किया है। हजारीबाग ज़िले के बरगड्डा गाँव से आने वाले हंसराज वर्तमान में रांची में रहते हैं और लगातार सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक विमर्श और जन मुद्दों पर लिख रहे हैं।
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