संपादकीय-
भारत में हर वर्ष 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। यह तिथि महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस से जुड़ी हुई है, जिन्हें खेल जगत में हॉकी का जादूगर कहा जाता है। यह दिन केवल एक औपचारिक स्मृति दिवस नहीं है, बल्कि यह हमारे लिए आत्मावलोकन का अवसर भी है कि खेलों के क्षेत्र में हम कहां खड़े हैं, किस दिशा में बढ़ रहे हैं और समाज के जीवन में खेलों की क्या वास्तविक भूमिका है। खेल केवल पदक और प्रतिष्ठा का माध्यम नहीं होते, बल्कि वे समाज की संस्कृति, राष्ट्र की ऊर्जा और पीढ़ियों की मानसिकता को आकार देने वाले स्तंभ भी हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस हमें यही याद दिलाता है कि खेल हमारे जीवन का सहायक नहीं, बल्कि जीवन दृष्टि का एक आधार है। भारत की खेल संस्कृति की जड़ें प्राचीन काल तक फैली हुई हैं। महाभारत और रामायण में वर्णित अस्त्र-शस्त्र अभ्यास, कुश्ती और धनुर्विद्या, प्राचीन मेलों में आयोजित अखाड़े, ग्रामीण समाज की कबड्डी और खो-खो की परंपरा, और योग जैसे शारीरिक अनुशासन की पद्धति यह प्रमाणित करती है कि खेल और शारीरिक साधना हमारे सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं। परंतु आधुनिक युग में खेल केवल शारीरिक बल प्रदर्शन का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र की शक्ति, अनुशासन, सहयोग और आत्मविश्वास की पहचान बन गए हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस इसी बदलते आयाम को रेखांकित करता है। भारत में खेलों की सबसे बड़ी चुनौती यह रही है कि हमने खेलों को लंबे समय तक केवल मनोरंजन का साधन माना, जबकि विकसित देशों ने खेलों को शिक्षा, स्वास्थ्य और राष्ट्रीय नीति का अंग बना दिया। ध्यानचंद के समय में हॉकी विश्व में भारत की पहचान थी।

तीन-तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक और मैदान पर उनका अद्वितीय प्रदर्शन उस युग की गौरवगाथा है। किंतु दुर्भाग्य यह रहा कि उनकी उपलब्धियां हमारे खेल प्रशासन और सामाजिक मानसिकता में स्थायी परिवर्तन नहीं ला सकीं। राष्ट्रीय खेल दिवस पर जब हम मेजर ध्यानचंद को याद करते हैं, तब यह प्रश्न भी उठना चाहिए कि क्या हमने उनके योगदान का समुचित सम्मान किया, या केवल स्मारकों और भाषणों तक उन्हें सीमित कर दिया। खेल राष्ट्र के लिए केवल पदक जीतने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह युवाओं को अनुशासन, धैर्य, संघर्षशीलता और टीम भावना का पाठ पढ़ाता है। भारत जैसे देश में, जहाँ युवाओं की जनसंख्या बहुत अधिक है, खेलों की शक्ति राष्ट्र निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभा सकती है। किंतु वास्तविकता यह है कि हमारे ग्रामीण और शहरी समाज में खेलों को अभी भी द्वितीयक महत्व दिया जाता है। परिवारों और स्कूलों की प्राथमिकता शिक्षा और नौकरी तक सीमित होती है, जबकि खेलों को एक शौक या समय व्यतीत करने का साधन माना जाता है। यही कारण है कि प्रतिभाशाली खिलाड़ी या तो संसाधनों की कमी से पिछड़ जाते हैं या फिर असमय अपने सपनों को छोड़कर रोज़गार की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस केवल अतीत की स्मृति या वर्तमान की चुनौतियों का लेखा-जोखा नहीं होना चाहिए, बल्कि यह भविष्य के लिए एक संकल्प का दिन बनना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि खेल और स्वास्थ्य का सीधा संबंध है। आज जब भारत में जीवनशैली संबंधी रोगों, मोटापे और मानसिक तनाव की समस्या तेजी से बढ़ रही है, खेल ही वह साधन है जो स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन दोनों को संवार सकता है। यह दुखद है कि बच्चों और युवाओं का अधिकांश समय स्क्रीन पर बीत रहा है और खेल के मैदान सुनसान हो रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय खेल दिवस हमें यह पुकार करता है कि हम मैदानों को पुनः जीवंत करें और खेलों को जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाएं। खेलों का एक बड़ा आयाम सामाजिक एकता भी है। खेल जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्रीय भेदभाव को पिघलाकर एक साझा मंच देते हैं, जहाँ खिलाड़ी केवल खिलाड़ी होता है। मेजर ध्यानचंद के खेल को देखिए, उन्होंने जिस सहजता से दुनिया को अपने कौशल से चकित किया, वह किसी एक समुदाय या क्षेत्र की उपलब्धि नहीं थी, बल्कि पूरे भारत का गर्व था। यही भावना आज भी ज़रूरी है। जब हम क्रिकेट के किसी विश्वकप में जीत का जश्न मनाते हैं, तो गांव से लेकर महानगर तक हर कोई उस खुशी में शामिल होता है। खेल हमें याद दिलाते हैं कि हम विभाजित पहचान से ऊपर उठकर एक साझा राष्ट्र के हिस्सेदार हैं। नीतिगत दृष्टि से देखा जाए तो भारत में खेलों के विकास के लिए अभी बहुत काम बाकी है। हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन संरचना और अवसर की कमी है। ग्रामीण भारत के हजारों युवा एथलीट संसाधनों की कमी से अपना करियर गंवा देते हैं। स्टेडियमों और अकादमियों की संख्या नगण्य है और जो हैं भी, वे अक्सर राजनीति और भ्रष्टाचार के शिकंजे में फंस जाते हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस पर नेताओं और अधिकारियों के भाषण यदि केवल औपचारिकता बनकर रह जाएंगे, तो इसका कोई अर्थ नहीं। ज़रूरी है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था में खेलों को अनिवार्य बनाए, खिलाड़ियों को दीर्घकालिक सहयोग दे, और खेल प्रशासन को पारदर्शी बनाए। मीडिया और समाज की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। आज मीडिया का ध्यान लगभग पूरी तरह क्रिकेट पर केंद्रित है, जबकि हॉकी, कबड्डी, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, कुश्ती, भारोत्तोलन और तीरंदाजी जैसे खेलों में भारतीय खिलाड़ी वैश्विक स्तर पर लगातार अपनी प्रतिभा साबित कर रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि इन खेलों के नायक केवल किसी अंतरराष्ट्रीय पदक के समय ही सुर्खियों में आते हैं और उसके बाद भुला दिए जाते हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस इस असंतुलन की ओर भी ध्यान दिलाता है कि खेल संस्कृति को संतुलित बनाने के लिए सभी खेलों को समान अवसर और सम्मान देना होगा। खेल का एक और पहलू यह है कि यह केवल पेशेवर खिलाड़ियों का विषय नहीं है, बल्कि हर नागरिक के जीवन का हिस्सा होना चाहिए। स्कूली बच्चों से लेकर कामकाजी वर्ग और बुजुर्गों तक, हर किसी को किसी न किसी रूप में खेल या शारीरिक गतिविधि से जुड़ना चाहिए। विदेशों में पार्क, जिम और खेल केंद्र समाज का अभिन्न हिस्सा हैं, जबकि भारत में पार्क तो हैं पर वे धीरे-धीरे व्यावसायिक कब्जे या उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि खेल को केवल खिलाड़ियों तक सीमित न रखकर इसे सामाजिक संस्कृति बनाएं। महिला खिलाड़ियों की बात करें तो पिछले दो दशकों में भारत की खेल यात्रा में महिलाओं ने ऐतिहासिक योगदान दिया है। पीटी ऊषा से लेकर साइना नेहवाल, मैरीकॉम, पीवी सिंधु, मीराबाई चानू और निकहत ज़रीन तक, इन खिलाड़ियों ने साबित किया है कि भारतीय बेटियां भी वैश्विक खेल मंच पर तिरंगा फहरा सकती हैं। किंतु इनके पीछे संघर्ष और संसाधनों की कमी की कहानियां भी छिपी हुई हैं। राष्ट्रीय खेल दिवस पर हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि खेलों में लैंगिक समानता को सुनिश्चित करना केवल आदर्श नहीं, बल्कि आवश्यकता है। राष्ट्रीय खेल दिवस का सबसे बड़ा संदेश यही है कि खेल जीवन का उत्सव है। यह हमें हार-जीत से ऊपर उठकर संघर्ष करने की कला सिखाता है। यह हमें बताता है कि जीवन एक खेल की तरह है, जहाँ धैर्य, अनुशासन और निरंतर प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं। मेजर ध्यानचंद का जीवन इसी का प्रतीक है। सीमित संसाधनों के बीच उन्होंने अपने जुनून से विश्व को भारतीय हॉकी के जादू का परिचय कराया। आज जब हम उनका जन्मदिवस राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं, तो यह केवल उनके स्मरण का दिन नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को व्यवहार में लाने का अवसर भी है। भारत के लिए खेलों का भविष्य उज्ज्वल है यदि हम सही दिशा में कदम बढ़ाएं। ओलंपिक, एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की लगातार बढ़ती उपलब्धियां संकेत देती हैं कि हम क्षमता की कमी से नहीं, बल्कि प्रणाली की जटिलताओं से जूझ रहे हैं। यदि शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल को एक साझा ढांचे में विकसित किया जाए, तो भारत की युवा पीढ़ी न केवल पदक तालिका में अग्रणी हो सकती है, बल्कि एक स्वस्थ और ऊर्जावान राष्ट्र का निर्माण भी कर सकती है। राष्ट्रीय खेल दिवस हमें यही प्रेरणा देता है कि हम खेल को केवल मनोरंजन न समझें, बल्कि इसे राष्ट्र की प्रगति का साधन बनाएं। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि मैदान में पसीना बहाने वाला खिलाड़ी केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए संघर्ष कर रहा होता है। उसके हर गोल, हर छक्का, हर मुक्के और हर पदक के पीछे एक राष्ट्र का सपना होता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम खेलों को केवल किसी दिवस विशेष तक सीमित न रखें। स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक खेलों को शिक्षा का हिस्सा बनाएं, ग्रामीण क्षेत्रों में खेल संरचना को मजबूत करें, खिलाड़ियों को सम्मानजनक करियर और भविष्य की सुरक्षा दें, और खेल प्रशासन को ईमानदार व पारदर्शी बनाएं। तभी राष्ट्रीय खेल दिवस का वास्तविक महत्व होगा।

