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भारत-जापान राज्य-प्रान्त साझेदारी से खुलेंगी विकास की नई राहें

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संपादकीय-

टोक्यो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के सोलह प्रान्तों के राज्यपालों के बीच हुई ऐतिहासिक बैठक ने भारत-जापान संबंधों को एक नई गति और दिशा प्रदान की है। यह केवल एक औपचारिक कूटनीतिक संवाद नहीं था, बल्कि वह क्षण था जिसने एशिया की दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच भविष्य की साझी यात्रा की संभावनाओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया। अब तक भारत-जापान सहयोग मुख्यतः केंद्रीय सरकारों तक सीमित रहा था, किंतु इस नई पहल ने द्विपक्षीय संबंधों को जमीनी धरातल पर उतारते हुए राज्यों और प्रान्तों तक विस्तार देने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह परिवर्तन केवल संरचना का नहीं बल्कि सोच का भी है, जिसमें स्थानीय सशक्तिकरण को अंतरराष्ट्रीय सहयोग का माध्यम बनाया गया है। भारत और जापान के संबंधों की जड़ें सदियों पुरानी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक निकटता में हैं। बुद्ध की करुणा और विचारधारा ने जापानी समाज में गहरे तक अपनी छाप छोड़ी है, वहीं जापान के अनुशासन, तकनीकी प्रगति और आधुनिकता से भारत ने प्रेरणा ली है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से जापान ने जिस तरह शांति, प्रौद्योगिकी और आर्थिक समृद्धि को अपने जीवन का आधार बनाया, वह भारतीय नीति-निर्माताओं के लिए भी अध्ययन का विषय रहा है। आज जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति और जापान एक उच्च विकसित तकनीकी राष्ट्र के रूप में वैश्विक मंच पर उपस्थित हैं, तब इन दोनों का साथ आना केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि भविष्य का अनिवार्य सच प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल इसीलिए विशेष है कि उन्होंने संबंधों को दिल्ली और टोक्यो के दायरे से बाहर निकालकर सीधे राज्य-प्रान्त स्तर तक ले जाने का आह्वान किया। इसका अर्थ है कि अब गुजरात के उद्योगपति सीधे ओसाका के निवेशकों से संवाद कर सकेंगे, बिहार के युवा टोक्यो के विश्वविद्यालयों में तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे और क्योटो की सांस्कृतिक संस्थाएँ वाराणसी से साझेदारी कर सकेंगी। इससे सहयोग न केवल औपचारिक दस्तावेज़ों तक सीमित रहेगा बल्कि जमीनी स्तर पर जनता से जनता के बीच संबंधों का स्वरूप भी ग्रहण करेगा। आज के समय में जब वैश्विक राजनीति बहुध्रुवीयता की ओर अग्रसर है और एशिया आर्थिक-सुरक्षात्मक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुका है, तब भारत और जापान का यह नज़दीकी सहयोग महज द्विपक्षीय नहीं रहेगा बल्कि पूरे एशियाई भूगोल को प्रभावित करेगा। चीन का बढ़ता प्रभाव, इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक असंतुलन और तकनीकी प्रभुत्व की होड़ ऐसे कारक हैं जिनके बीच भारत-जापान साझेदारी स्थिरता और संतुलन का आधार बन सकती है। राज्य-प्रान्त साझेदारी का मॉडल एशिया के लिए नया प्रयोग होगा, जहाँ केवल केंद्रीय स्तर पर नीतियां नहीं बल्कि स्थानीय स्तर पर भी निवेश, नवाचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान संभव होगा। बैठक में जिन क्षेत्रों पर जोर दिया गया। प्रौद्योगिकी, नवाचार, निवेश, कौशल विकास, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्टार्टअप और मध्यम उद्यम वे न केवल आर्थिक विकास के क्षेत्र हैं बल्कि 21वीं सदी के वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मानदंड भी हैं। भारत की विशाल जनसंख्या और युवा शक्ति को जापान की उच्च प्रौद्योगिकी और संसाधनों से जोड़ दिया जाए तो यह संयोजन अप्रतिम परिणाम दे सकता है। उदाहरण के लिए, भारत का आईटी क्षेत्र और जापान की रोबोटिक्स तकनीक मिलकर एशिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में नए औद्योगिक मानदंड स्थापित कर सकते हैं। इसी प्रकार, कृषि और ग्रामीण विकास में जापानी वैज्ञानिकता और भारतीय सामाजिक-आर्थिक विविधता का मेल भविष्य के लिए स्थायी मॉडल प्रस्तुत कर सकता है।प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में यह बिल्कुल सही कहा कि भारत और जापान साझा विकास और वैश्विक शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं। वास्तव में, जब पूरी दुनिया आतंकवाद, पर्यावरण संकट और आर्थिक असमानताओं से जूझ रही है, तब भारत-जापान का सहयोग शांति और संतुलन का नया रास्ता दिखा सकता है। यह साझेदारी केवल एशियाई परिप्रेक्ष्य तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अन्य विकासशील क्षेत्रों तक अपनी छाप छोड़ेगी। जापान की पूंजी और भारत का मानव संसाधन मिलकर वैश्विक दक्षिण को नई ऊर्जा दे सकते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत-जापान संबंधों का यह नया अध्याय केवल आर्थिक या रणनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय भी है। वाराणसी और क्योटो की मित्रता इसका प्रतीक रही है। अब यदि यह सांस्कृतिक साझेदारी प्रान्त-राज्य स्तर पर आगे बढ़ती है तो भारतीय और जापानी समाजों के बीच एक गहरी आत्मीयता विकसित होगी। यह आत्मीयता केवल समझौतों और व्यापार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह लोगों के दिलों और दिमागों को जोड़ने वाली होगी। हालांकि इस साझेदारी की राह आसान नहीं होगी। भाषाई, प्रशासनिक और सांस्कृतिक भिन्नताएँ कई बार संवाद की गति को धीमा कर सकती हैं। लेकिन भारत और जापान ने अतीत में यह साबित किया है कि धैर्य और प्रतिबद्धता के साथ किसी भी कठिनाई को अवसर में बदला जा सकता है।

 

हंसराज चौरसिया( पत्रकार )
हंसराज चौरसिया
( पत्रकार )

आवश्यक यह है कि दोनों देशों की सरकारें राज्यों और प्रान्तों को पर्याप्त स्वतंत्रता और संसाधन उपलब्ध कराएँ ताकि वे स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार सहयोग की दिशा तय कर सकें।एशियाई राजनीति के परिप्रेक्ष्य में इस पहल का एक और गहरा महत्व है। यह चीन के वर्चस्व के बीच संतुलन स्थापित करने का साधन बन सकती है। भारत और जापान दोनों ही लोकतांत्रिक मूल्य, खुला व्यापार और पारदर्शी शासन व्यवस्था में विश्वास करते हैं। यदि ये दोनों देश मिलकर एशिया में आर्थिक गलियारों, डिजिटल नेटवर्क और शिक्षा-संस्कृति के साझा मंच तैयार करते हैं तो यह पूरे क्षेत्र को एक नए सामूहिक भविष्य की ओर ले जाएगा। राज्य-प्रान्त साझेदारी पहल को ठोस जमीन पर उतारने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और पर्यटन जैसे क्षेत्रों को भी केंद्र में रखना होगा। जापान के विश्वविद्यालयों और भारत के शैक्षणिक संस्थानों के बीच सीधे करार, चिकित्सा और नर्सिंग प्रशिक्षण में सहयोग, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान और सांस्कृतिक पर्यटन को प्रोत्साहन ये सब ऐसे कदम हैं जो न केवल आर्थिक लाभ देंगे बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को भी सुनिश्चित करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी की टोक्यो यात्रा से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत-जापान संबंध अब केवल औपचारिकताओं का हिस्सा नहीं रहेंगे बल्कि यह जन-जन तक पहुँचेगा। जिस प्रकार दोनों देशों की सभ्यताएँ समय की धारा में एक-दूसरे से सीखती रही हैं, उसी प्रकार आज भी यह संबंध नई ऊर्जा और नए आयामों को आत्मसात कर रहे हैं। भविष्य में यदि यह पहल सफलतापूर्वक लागू होती है तो यह एशिया की भू-राजनीति को बदल देने वाला क्षण साबित हो सकता है। भारत की जनसंख्या और बाजार क्षमता तथा जापान की तकनीकी और पूंजीगत शक्ति मिलकर उस सामर्थ्य का निर्माण कर सकती है जो किसी भी वैश्विक शक्ति केंद्र का संतुलन बदल दे। यह केवल सहयोग नहीं बल्कि साझा भविष्य का निर्माण होगा, जहाँ विकास का लक्ष्य केवल आर्थिक वृद्धि नहीं बल्कि शांति, स्थिरता और मानवीय समृद्धि होगी। इसलिए कहा जा सकता है कि टोक्यो में हुई यह बैठक केवल एक दिन का आयोजन नहीं थी, बल्कि यह इतिहास की दिशा बदलने वाला कदम है। यह वह आधारशिला है जिस पर आने वाले दशकों में भारत और जापान मिलकर एशिया और विश्व के लिए नई इमारत खड़ी करेंगे। इस इमारत की नींव विश्वास, पारदर्शिता और साझा मानवीय मूल्यों पर आधारित होगी। भारत और जापान की यह साझेदारी एक नई एशियाई सुबह की प्रतीक है, जहां सहयोग प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठकर मानवता की साझा भलाई को प्राथमिकता देगा। यह पहल दोनों देशों के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए आशा का संदेश है।

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राज्य प्रमुख
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हंसराज चौरसिया स्वतंत्र स्तंभकार और पत्रकार हैं, जो 2017 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत स्वतंत्र प्रभात से की और वर्तमान में झारखंड दर्शन, खबर मन्त्र, स्वतंत्र प्रभात, अमर भास्कर, झारखंड न्यूज़24 और क्राफ्ट समाचार में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साथ ही झारखंड न्यूज़24 में राज्य प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (2024–26) कर रहे हंसराज का मानना है कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ को व्यवस्था तक पहुंचाने का सार्वजनिक दायित्व है। उन्होंने राजनीतिक संवाद और मीडिया प्रचार में भी अनुभव हासिल किया है। हजारीबाग ज़िले के बरगड्डा गाँव से आने वाले हंसराज वर्तमान में रांची में रहते हैं और लगातार सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक विमर्श और जन मुद्दों पर लिख रहे हैं।
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