फादर कामिल बुल्के ने हिंदी सहित अन्य देशीय भाषाओं को भी आत्मसात किया था
विशेष–
हिंदी के मर्मज्ञ विद्वान फादर कामिल बुल्के का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित रहा था । उन्होंने अन्य देशीय भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने देशभर में प्रचलित जिस भी भाषा में भगवान राम के चरित्र का वर्णन था, गहराई से अध्ययन किया। इसके बाद ही उन्होंने अपने शोध ग्रंथ में भगवान राम के विराट व अद्वितीय व्यक्तित्व का वर्णन किया। अर्थात उन्होंने भगवान राम के जीवन पर लिखने के क्रम में देश के समस्त भाषाओं को भी जोड़ने का भी काम किया। आज दक्षिण भारत सहित कई अन्य प्रदेशों में हिंदी के विरुद्ध एक साजिश रची जा रही है। हिंदी बोलने और हिंदी में पोस्टर लगाने के नाम पर हत्याएं तक की जा रही हैं। उन सबों को फादर कामिल बुल्के के देश की समस्त भाषाओं के प्रति उनके लगाव से सबक लेना चाहिए। देश में प्रचलित समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा है । संस्कृत का भी उन्होंने गहराई से अध्ययन किया था। जब समस्त देशीय भाषाओं की जननी संस्कृत है, तब हिंदी से इतनी नफ़रत क्यों ? इस बात को समझने की जरूरत है। क्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम सिर्फ हिंदी भाषियों के देवता हैं ? वे तो भारत में प्रचलित सभी देशीय भाषाओं के देवता के रूप में माने और पूजे जाते हैं। भाषा की राजनीति से ऊपर उठकर देश की सभी भाषाओं को गले लगाने की जरूरत है।

( कथाकार /स्तंभकार )
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग – 825301
मोबाइल नंबर ; 92347 99550
फादर कामिल बुल्के का जन्म आज से 116 वर्ष पूर्व बेल्जियम में हुआ था। बचपन से ही कामिल बुल्के दार्शनिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । वे बाल कल से ही कम बोला करते थे। उनका ज़्यादातर समय चिंतन में व्यतित होता था । वे बचपन से ही एक प्रतिभा शील बालक रहे थे। उनका दयावान और करुणा शीलता का यह स्वभाव जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा था थे। वे हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे रहते थे । उनका यही स्वभाव बाद के कालखंड में उन्हें फादर बना दिया था। वे एक सहज, सरल प्रकृति के व्यक्ति थे। हमेशा लोगों से बहुत ही सहजता के साथ बात किया करते थे । उनके चेहरे पर एक विशेष आभा झलकती रहती थी। फादर कामिल बुल्के का यह मधुर स्वभाव हर मिलने वालों को अपना बना लेता था। फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम में जरूर हुआ था, लेकिन उनकी मौत भारत में 72 वर्ष की उम्र में हो गई थी। हिंदी के प्रति उनकी रुचि हिंदी साहित्य अध्ययन से के उपरांत हुई थी ।जब उनका साक्षात्कार संत तुलसीदास के रामचरित मानस से हुआ, तब वे राम चरित मानस से ऐसा जुड़ गए, कि जीवन भर उसी से जुड़े रहे थे। उन्होंने बहुत ही गहराई के साथ रामचरितमानस का अध्ययन किया था । उन्होंने रामचरितमानस के अध्ययन के उपरांत त संपूर्ण देश में प्रचलित रामायण के विविध ग्रंथों का भी अध्ययन किया था । उन्होंने यह बात प्रतिपादित किया कि इस धरा के आदि पुरुष के रूप में भगवान राम जाने जाते रहे थे । जाने जाते हैं । और आगे भी जाने जाते रहेंगे। फादर कामिल बुल्के की जीवन यात्रा विचित्रता से भरी हुई है। बेल्जियम की जमीन ने उन्हें पालपोस कर बड़ा जरूर किया था। लेकिन भारत वर्ष उनकी कर्म भूमि के रूप में हमेशा याद की जाती रहेगी। उन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय भारत को दिया था। भारत की भाषा के प्रति उनकी गहरी रुचि देशवासियों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने रामचरितमानस के माध्यम से संपूर्ण भारतवर्ष को पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक जोड़ने का प्रयास किया था। वे 26 वर्ष की उम्र में बेल्जियम से भारत एक मिशनरी के रूप में ईसाई धर्म का प्रचार करना आये थे। लेकिन यहां आकर मृत्यु पर्यंत तक अपना पूरे जीवन हिन्दी भाषा, तुलसीदास व महर्षि वाल्मीकि के भक्त बन कर रहे थे ।
फादर कामिल बुल्के ने दर्ज किया कि जब वे भारत आये तो उन्हें यह देखकर दुख व आश्चर्य हुआ कि अनेक शिक्षित लोग अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से अनजान थे । भारतवासी इंगलिश बोलने में गर्व महसूस करते थे। मैंने अपने कर्तव्यों पर विचार किया कि इन लोगों की देशज भाषा की महत्ता को सिद्ध करूंगा । फादर कामिल बुल्के अंग्रेजी के भी प्रकांड विद्वान थे । अंग्रेजी उनकी मातृभाषा थी। फिर भी उनका हिंदी प्रेम देखकर समस्त देशवासियों को गौरव महसूस करना चाहिए। भारतवासी अंग्रेजी बोलकर अपनी विद्वत जाहिर करते हैं । जबकि भारत की रीति रिवाज, परंपरा, भाषा, खान-पान पश्चिमी देशों से ज्यादा सुदृढ़ है । फादर कामिल बुल्के का जब हिंदी साहित्य से साक्षात्कार हुआ, जब उन्होंने हिंदी रूपी साहित्य सागर में गोता लगाना शुरू किया, तब वे हिंदी साहित्य सागर की गहराई देखकर आश्चर्य चकित रह गए थे । उसी समय उन्होंने यह ठान लिया था कि भारत की समृद्ध और सुदृढ़ भाषा साहित्य से भारत वासियों को परिचित कराऊंगा। उन्होंने हिंदी साहित्य का विराट अध्ययन किया। आगे उन्होंने छोटी-छोटी गोष्ठियों के माध्यम से समृद्ध हिंदी भाषा से लोगों का साक्षात्कार करवाया।
फादर कामिल बुल्के ने निश्चय किया कि अब उनकी कर्मभूमि भारत है और भारत को जानने और समझने के लिये उन्हें यहां की भाषा सीखनी व समझनी होगी । बुद्धि से बेहद कुशाग्र व लगन से उन्होंने अगले पॉच सालों में उत्तर भारत की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत पर भी अपनी मज़बूत पकड़ बना ली । उन्होंने हिंदी से शुरुआत कर समस्त भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा का भी गहराई से अध्ययन किया था । संस्कृत में लिखित बाल्मिकी कृत रामायण का भी उन्होंने गहराई से अध्ययन किया था।
फादर कामिल बुल्के ने 1940 में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से विशारद की परीक्षा पास की जिसके लिये उन्हें पुजारी की उपाधि दी गई थी। फादर कामिल बुल्के ने इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर की डिग्री ली थी। उन्होंने 1945 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट की डिग्री ली थी । फादर कामिल बुल्के के शोध पत्र का शीर्षक राम कथा की उत्पत्ति और विकास था । फादर बेल्जियम से उच्च डिग्री प्राप्त करने के बावजूद भारत भूमि पर उन्होंने हिंदी की उच्चतर डिग्री प्राप्त की थी ।अर्थात फादर कामिल बुल्के एक शिक्षाविद के साथ आजीवन एक विद्यार्थी भी रहे थे। फादर कामिल बुल्के का शोध ग्रंथ राम कथा की उत्पत्ति और विकास वैज्ञानिकता और तार्किकता पर आधारित भगवान राम का चरित्र चित्रण है। उनका शोध साबित करता है कि भगवान राम वाल्मीकि के कल्पित पात्र नहीं बल्कि इतिहास पुरुष थे। फादर कामिल बुल्के के इस शोध ग्रंथ ने पहली बार कई उद्धरणों से साबित किया है कि भगवान राम की कथा केवल भारत की नहीं अंतरराष्ट्रीय कथा है । वियतनाम से लेकर इंडोनेशिया तक यह कथा फैली हुई है । इस तरह का शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहले शोधार्थी थे। उन्होंने भगवान राम को एक वैश्विक महापुरुष होने का दर्जा प्रदान किया था। फादर कामिल बुल्के ने राम कथा की उत्पत्ति और विकास के अलावा हिंदी भाषा पर कई शोध ग्रंथ लिखे हैं । फादर कामिल बुल्के का हिंदी अंग्रेज़ी शब्द कोष किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं । भारत सरकार ने फादर कामिल बुल्के को हिंदी साहित्य की सराहनीय सेवा के लिये देश का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म भूषण से 1974 में सम्मानित किया था। हिंदी साहित्य की कई केंद्रीय समितियों में भी वह नामित रहे थे। फादर कामिल बुल्के ने हिंदी में ग्रेजुएशन रांची विश्वविद्यालय से किया था । वे रांची के सेंट जेवियर्स कालेज के हिंदी व संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे। एक प्राध्यापक के रूप में उन्होंने विद्यार्थियों के लिए जो कुछ भी किया, सभी शिक्षकों के लिए अनुकरणीय है। उन्हें महाविद्यालय से जो तनख्वाह मिलता था उसमें से गरीब विद्यार्थियों की पढ़ाई में भी मदद किया करते थे। शेष तनख्वाह की राशि यात्रा और शोध पर खर्च किया करते थे।। यह मेरा सौभाग्य रहा की कई बार फादर कामिल बुल्के से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ ।कई बार सीधे उनके भाषणों को सुना ।संत कवि तुलसीदास की जयंती पर रांची में उन्होंने जो यादगार भाषण दिया था आज भी श्रोताओं के दिल में स्थापित है। फादर कामिल बुल्के ने हिंदी साहित्य को अपने रचनाकर्म से और भी समृद्ध शाली बना दिया था। आज उन पर समस्त हिंदी के भाषियों को गर्व है।