गुमला/रांची-
झारखंड की धरती पर खून और दहशत का खेल खेलने वाले जेजेएमपी का परचम अब पूरी तरह लहराना बंद हो गया है। बुधवार की सुबह गुमला के बिशनपुर के जंगलों में गूंजती गोलियों की आवाज़ उस आतंकी संगठन की आख़िरी सांस साबित हुई, जिसने बरसों तक झारखंड के पहाड़ों और गांवों में मौत का तांडव मचाया था। झारखंड जगुआर और गुमला पुलिस ने जिस तरह घेराबंदी कर तीन खूंखार उग्रवादियों को ढेर किया, उसने साफ़ कर दिया कि अब बंदूक की नहीं, कानून और लोकतंत्र की जीत होगी।
आधी रात की गुप्त प्लानिंग, सुबह मौत की बारिश
सूत्रों के मुताबिक, मंगलवार रात गुमला पुलिस और झारखंड जगुआर के बीच गुप्त बैठक हुई। खुफ़िया सूत्रों ने सूचना दी कि जेजेएमपी का बड़ा गिरोह सीमा पर इकठ्ठा है। आईजी अनूप बिरथरे और आईजी अभियान डॉ. माइकल राज ने तय किया कि अब कोई चूक नहीं होगी। इस बार पूरी ताक़त से घेरा जाएगा। रातों-रात तीन टीमें गुमला की ओर बढ़ीं। बुधवार सुबह जंगलों को जब सुरक्षा बलों ने घेर लिया तो आतंकियों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह उनका आख़िरी हमला साबित होगा।
सुबह आठ बजे जैसे ही जंगल गूंजे, लालू लोहरा, छोटू उरांव और सुजीत उरांव की किस्मत का सूरज वहीं डूब गया। तीनों वहीं ढेर हो गए, जबकि कुख्यात ब्रजेश जान बचाकर भाग निकला। लेकिन पुलिस ने साफ़ कहा है भागने का मतलब बचना नहीं, अब उसका नाम भी इतिहास होगा।
24 मई मौत की तारीख़, जिसने पलट दिया खेल
जेजेएमपी का तख़्त 24 मई 2025 को ही हिल गया था, जब संगठन का सिर और 10 लाख का इनामी पप्पू लोहरा मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। यह वही दिन था जिसने संगठन के खौफ की जड़ें काट दीं। इसके बाद लगातार आत्मसमर्पण की बरसात होने लगी सितंबर में एक ही दिन नौ नक्सलियों ने पुलिस के आगे हथियार डाल दिए। पुलिस की बंदूकें और सरकार की सख्ती देख जंगल का आतंक खुद घुटनों के बल झुकने पर मजबूर हो गया।
अब जेजेएमपी का नाम सिर्फ़ किताबों में मिलेगा
आईजी अभियान डॉ. माइकल राज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया कि जेजेएमपी का सफाया पूरा हो चुका है। अब केवल गिनती के दो-चार लोग बचे हैं। उनके पास आत्मसमर्पण का रास्ता है, वरना गोलियों की बौछार में उनका अंत तय है।
ग्रामीणों की सांसें लौटीं, जंगलों से लौटेगी शांति
गुमला और लातेहार के लोग वर्षों से इस आतंकी छाया में जी रहे थे। जेजेएमपी के नाम पर वसूली, अपहरण और हत्या जैसी वारदातें आम हो चुकी थीं। बुधवार की सुबह के बाद गांववालों ने पहली बार राहत की सांस ली। लोगों ने कहा आज जंगलों से सचमुच आतंक का साया मिट गया। यह पुलिस की असली जीत है।
पर सवाल भी बड़ा है…
क्या सचमुच नक्सलवाद का यह आख़िरी चैप्टर है? इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी संगठन को खत्म किया गया, कुछ वर्षों बाद नए नाम से वह फिर सिर उठाता रहा। असली सवाल यह है कि क्या झारखंड सरकार अब जंगलों के उन गरीबों तक विकास पहुंचाएगी, जिनकी लाचारी ने नक्सलवाद को जन्म दिया? या यह सिर्फ़ एक और कहानी होगी कि बंदूकें तो टूटीं, लेकिन बारूद की गंध बची रही।
झारखंड पुलिस की इस कार्रवाई ने नक्सलवाद के खिलाफ़ एक नया इतिहास रच दिया है। जेजेएमपी का आतंक अब ताबूत में आख़िरी कील की तरह दफ़न हो चुका है।
गुमला के जंगलों में गोलियों की गूंज ने ऐलान कर दिया अब यहां केवल विकास की गूंज होगी, आतंक की नहीं।

