दूध के दाँत बच्चों के भविष्य की नींव, लापरवाही पड़ सकती है भारी : डॉ चंदन कुमार
हजारीबाग
बच्चों में निकलने वाले दूध के दाँत (मिल्क टीथ) को लेकर आमतौर पर अभिभावकों में यह धारणा बनी रहती है कि ये दाँत तो कुछ वर्षों में गिर ही जाते हैं, इसलिए इनकी विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं है। लेकिन दंत विशेषज्ञों के अनुसार यह सोच पूरी तरह गलत है। बच्चों के दूध के दाँत न केवल वर्तमान स्वास्थ्य बल्कि भविष्य में आने वाले स्थायी दाँतों और संपूर्ण व्यक्तित्व विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दंत चिकित्सकों का कहना है कि दूध के दाँत बच्चों को भोजन ठीक से चबाने में मदद करते हैं, जिससे उन्हें आवश्यक पोषण मिलता है। इसके साथ ही बोलने की क्षमता और सही उच्चारण के विकास में भी इन दाँतों की अहम भूमिका होती है। दूध के दाँत स्थायी दाँतों के लिए सही जगह बनाए रखते हैं।
यदि कोई दूध का दाँत समय से पहले गिर जाता है या खराब हो जाता है, तो आगे आने वाले पक्के दाँत टेढ़े-मेढ़े निकल सकते हैं। इसके अलावा दूध के दाँत बच्चों के चेहरे की बनावट और मुस्कान को आकर्षक बनाते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। स्वस्थ दाँत होने पर बच्चा खुलकर बोलता और हँसता है। वहीं, खराब दूध के दाँत दर्द, सूजन और संक्रमण का कारण बन सकते हैं, जिसका असर स्थायी दाँतों पर भी पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में दूध के दाँतों में कीड़ा लगना एक आम समस्या है। समय पर इलाज न होने पर तेज दर्द, पस बनना, बुखार जैसी परेशानियाँ हो सकती हैं और आगे आने वाले स्थायी दाँत भी खराब हो सकते हैं। डॉ चंदन कुमार ने अभिभावकों को दूध के दाँतों की देखभाल के लिए कुछ आसान उपाय अपनाने की सलाह दी है। जैसे दाँत निकलते ही सॉफ्ट ब्रश और थोड़ी फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट का उपयोग करना, रात में दूध पिलाने के बाद बच्चे का मुँह साफ करना, मीठा खाने के बाद कुल्ला करवाना और हर छह महीने में एक बार दंत चिकित्सक से जांच कराना। उत्कल डेंटल एंड स्कीन केयर क्लीनिक, हजारीबाग के डॉक्टर चंदन कुमार ने कहा कि दूध के दाँत भले ही अस्थायी हों, लेकिन उनका असर स्थायी होता है। बच्चों के स्वस्थ भविष्य के लिए दूध के दाँतों की सही और समय पर देखभाल बेहद जरूरी है।

