झारखंड में लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा, नगर निकाय चुनाव की उलटी गिनती शुरू, जल्द होंगे चुनाव के तारीखों का ऐलान, सियासत में भूचाल!
रांची-
सेन्ट्रल डेस्क-
झारखंड की राजनीति इस समय उस निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, जहां नगर निकाय चुनाव का मुद्दा सिर्फ सत्ता और राजनीति का खेल नहीं रहा, बल्कि जनता के धैर्य और लोकतंत्र के विश्वास की सबसे बड़ी परीक्षा बन गया है। महीनों से टलते-टलते आखिरकार राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया और पूर्व मुख्य सचिव अलका तिवारी को राज्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त कर दिया।
यह वही पद है जो 25 मार्च से खाली पड़ा था और जिसकी वजह से नगर निकाय चुनाव की पूरी प्रक्रिया थम गई थी। अदालत लगातार सरकार को फटकार रही थी, विपक्ष इसे मुद्दा बनाकर हमलावर था और जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के इंतज़ार में मायूस होती जा रही थी। शहरों में विकास की योजनाएं रुक गई थीं, निकाय स्तर पर निर्णय ठप हो गए थे और लोकतंत्र का पहिया जैसे थम-सा गया था। ऐसे संवेदनशील समय में अलका तिवारी की नियुक्ति उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आई है।
अलका तिवारी पांच अक्टूबर को पदभार ग्रहण कर सकती हैं और जैसे ही वे जिम्मेदारी संभालेंगी, पूरे राज्य की नज़रें सीधे नगर निकाय चुनाव की तारीख़ों पर टिक जाएंगी। जनता अब चाहती है कि यह चुनाव हर हाल में हों, ताकि शहरों का भविष्य तय हो सके और लोकतंत्र की धड़कन फिर से सामान्य हो।
अलका तिवारी का व्यक्तित्व और उनका सफर उन्हें बाकी अफसरों से अलग करता है। 1988 बैच की तेज़तर्रार IAS अधिकारी के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है। मेरठ यूनिवर्सिटी और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल हासिल करना, हार्वर्ड और ड्यूक जैसे विश्वविख्यात संस्थानों से शिक्षा पाना और रांची विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री लेना उनकी पढ़ाई और प्रशासनिक अनुभव की गहराई खुद बयां करती है। उनकी छवि एक ऐसे अफसर की रही है जो फैसले लेने से कभी पीछे नहीं हटते और यही कारण है कि उनकी नियुक्ति से सियासी गलियारों में बेचैनी और जनता में उम्मीद दोनों ही बढ़ गई है।
यह फैसला झारखंड की राजनीति में नया भूचाल लेकर आया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने जानबूझकर चुनाव टाले और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ किया, वहीं सत्ता पक्ष इसे जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सबूत बता रहा है। लेकिन असली सवाल यह है कि नगर निकाय चुनाव कब होंगे, किस तरह होंगे और इनके नतीजे झारखंड की सियासत का चेहरा कैसे बदलेंगे।
राज्य इस वक्त एक संवेदनशील मोड़ पर खड़ा है। नगर निकाय चुनाव सिर्फ राजनीतिक दलों की रणनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि जनता की सांसें हैं। यह चुनाव तय करेगा कि झारखंड में लोकतंत्र कितना मजबूत है और जनता का विश्वास कितना अटूट। अब सबकी निगाहें अलका तिवारी पर टिकी हैं, जिनकी कलम और कड़े तेवर आने वाले समय में राज्य की तकदीर लिखने वाले हैं।

