नेपाल-
काठमांडू की ठंडी रात में नेपाल की राजनीति अचानक तप उठी। राष्ट्रपति भवन शीतल निवास में शुक्रवार को राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने ऐसा दांव चला, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। यह कदम न सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, बल्कि संवैधानिक हलचल भी मचा गया। अब तक हर सरकार अनुच्छेद 76 के तहत बनती आई थी, लेकिन इस बार राष्ट्रपति ने सीधा अनुच्छेद 61 का सहारा लिया। एक ऐसा प्रावधान जिसमें प्रधानमंत्री का नाम तक दर्ज नहीं है! यानि राष्ट्रपति ने अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर देश की बागडोर कार्की को सौंप दी। साथ ही यह घोषणा भी कर दी गई कि अगले छह महीनों में संसद का चुनाव होगा।लेकिन इस फैसले के तुरंत बाद राजनीतिक माहौल और गरम हो गया। जेन-ज़ी नेताओं ने ऐलान किया कि वे इस सरकार का हिस्सा नहीं बनेंगे।
उनका कहना है हम सत्ता की कुर्सी नहीं, बल्कि जनता की निगरानी चाहते हैं। इस बयान ने सियासी हलकों में और सनसनी फैला दी है। उधर काठमांडू के चर्चित मेयर बालेन शाह ने शपथ ग्रहण के बाद सड़कों पर गूंजे नारों और बलिदानों को याद करते हुए प्रदर्शनकारियों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, जेन-ज़ी की बहादुरी ने इतिहास बदल दिया। आपके बलिदान को नेपाल कभी नहीं भूलेगा। यह योगदान भविष्य की पीढ़ियों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाएगा।
यह पहली बार नहीं है कि नेपाल में कोई जज प्रधानमंत्री बना हो। 2013 में मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी को भी राजनीतिक गतिरोध तोड़ने के लिए अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया था। अब एक बार फिर, न्यायपालिका से आईं सुशीला कार्की ने वही इतिहास दोहराया है, लेकिन इस बार महिला नेतृत्व के रूप में। नेपाल की सियासत इस वक्त मानो ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ी है। एक तरफ संविधान की असामान्य व्याख्या, दूसरी तरफ युवाओं का विद्रोही रुख और बीच में पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री पूरा परिदृश्य देश को आने वाले महीनों में हिला कर रख सकता है। नेपाल में सत्ता बदल गई है, लेकिन असली तूफ़ान अभी बाकी है!

