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कोजागरी लक्खी पूजा को लेकर भक्ति व उत्साह का माहौल

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कोजागरी लक्खी पूजा को लेकर भक्ति व उत्साह का माहौल

झारखंड न्यूज 24
बिंदापाथर
प्रियजीत पाण्डेय

बिंदापाथर थाना मुख्यालय के अलावा मंझलाडीह, हरिराखा, डुमरीया, सिमलडूबी, खमारबाद, खैरा, सालुका, गेड़िया, श्रीपुर, बांदो, फुटबेड़िया, माड़ाले सहित संपूर्ण क्षेत्र में भक्ति एवं उत्साह के माहौल में कोजागरी लक्खी पूजा मानाया जा रहा है। घर घर में धन देवी की पूजा और आराधना के कारण संपूर्ण क्षेत्र में भक्तिमय वातावरण बना हुआ है। मूलतः इस पर्व में माता लक्ष्मी की ही पूजा की जाती है लेकिन बांग्ला भाषी बहुल क्षेत्र में लक्खी पूजा के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। इस अवसर पर बिंदापाथर थाना क्षेत्र के सिमलडूबी गांव स्थित लक्खी मंदिर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पांच दिवसीय बार्षिक लक्खी पूजा का आयोजन किया गया है। लक्खी पूजा को लेकर क्षेत्र के महिला पुरूष, युवा एवं बच्चे काफी उत्साहित हैं।

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मौके पर आचार्य सह पुरोहित के द्वारा विधि विधान पूर्वक लक्खी माता कलश व मूर्ति स्‍थापना के पश्चात बैदिक मंत्रोंउच्‍चारण के साथ धूप, दीपक, फल, फूल और नैवेद्य समपर्ति करते हुए पूजा-पाठ किया गया। जिसमें महिला पूरुष श्रद्धालु शामिल हुए। महिलाओं ने दिनभर उपवास रखकर पूजाअर्चना किया तथा सालभर सुख,समृद्धि,धन व वंश की कामना की। इधर मां के दरबार में छोटे बड़े सभी ने पूजा के उपरांत मन्नत मांगी गांव में पांच दिवसीय धार्मिक पर्व को लेकर क्षेत्र में भक्ति एवं उत्साह का माहौल देखा गया। इस अवसर बलराम मोहली, सुधीर चन्द्र मंडल,निर्मल मंडल,रविराल मंडल,रथिन मंडल,मंटु मंडल,आशिष कुमार मंडल, लालन मंडल सहित काफी संख्या में महिला पुरुष श्रद्धालु उपस्थित थे।

धार्मिक मान्यता के अनुसार कोजागरी लखी पूजा का आयोजन आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। जिसे कोजागरी पर्व भी कहा जाता है। यह दशहरा के बाद पांचवे दिन आता है। इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन विधि विधान से पूजन व्रत करते है उसके घर पैसों की बारिश होती है। लक्ष्मी माता उसके घर विराजमान होती हैं। रात में होती है महालक्ष्मी की पूजा कोजागरी के अवसर पर महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर रात जागकर महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। आश्विन और कार्तिक को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया है। कोजागरी पूर्णिमा के रात की बड़ी मान्यता है, कहा गया है कि इस रात चांद से अमृत की वर्षा होती है।

यह बात काफी हद तक सही है। इस रात दुधिया प्रकाश में दमकते चांद से धरती पर जो रोशनी पड़ती है उससे धरती का सौन्दर्य यूं निखरता है कि देवता भी आनन्द की प्राप्ति हेतु धरती पर चले आते हैं। इस रात की अनुपम सौंदर्य की महत्ता इसलिए भी है क्योंकि देवी महालक्ष्मी जो देवी महात्म्य के अनुसार सम्पूर्ण जगत की अधिष्ठात्री हैं, इस रात कमल आसन पर विराजमान होकर धरती पर आती हैं। मां लक्ष्मी इस समय देखती हैं कि उनका कौन भक्त जागरण कर उनकी प्रतिक्षा करता है, कौन उन्हें याद करता है। इस कारण इसे को-जागृति यानी कोजागरी कहा गया है तथा आस्था के अनुरूप श्रद्धालु रात भर मां की उपासना में लीन रहते हैं।

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