नियम-कायदों की अनदेखी से एम्बुलेंस सेवाएं बन रहीं जानलेवा
संपादकीय-
आज की तेजी से बदलती जीवनशैली और बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं के दौर में एम्बुलेंस सेवाएं हमारी जीवनरेखा बन चुकी हैं। कोई भी गंभीर स्वास्थ्य आपातकाल चाहे वह दिल का दौरा हो, सड़क हादसा हो, या किसी अन्य आकस्मिक चोट वास्तव में समय की लड़ाई होती है। ऐसे समय में एम्बुलेंस का महत्व अत्यंत बढ़ जाता है, क्योंकि यह केवल मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच का पुल बन जाती है। लेकिन जब यही एम्बुलेंस सेवा, जो जीवन बचाने के लिए बनी थी, खुद खतरे का कारण बन जाए, तो यह समाज के लिए गंभीर चुनौती बन जाती है। यह विडम्बना तब उत्पन्न होती है, जब नियम-कायदों की अनदेखी और लापरवाही के चलते ये सेवाएं मरीज और अन्य लोगों दोनों के लिए जानलेवा साबित होती हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में एम्बुलेंस सेवाओं की भूमिका तेजी से बढ़ी है। बड़े शहरों में रात-दिन दौड़ती एम्बुलेंसें, जिनमें हर उपकरण उपलब्ध होने का दावा होता है, कई बार सिर्फ दिखावे तक सीमित रह जाती हैं। उन्हें चलाने वाले चालक नियमों का उल्लंघन करते हैं, वाहन के रख-रखाव में लापरवाही होती है, और मरीज को ले जाने के दौरान सुरक्षा मानकों की अनदेखी होती है। इसका परिणाम यह होता है कि मरीज की जान को बचाने के बजाय जोखिम में डाल दिया जाता है। हमारे देश में कई बार ऐसी घटनाएं देखने को मिली हैं जहां एम्बुलेंस दुर्घटना का शिकार हो गई, जिससे मरीज की मृत्यु हो गई या हालत और बिगड़ गई। इन घटनाओं की प्रमुख वजह हमेशा नियमों का पालन न करना रही है। चालक अधिक गति से वाहन चलाते हैं, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करते हैं, और अक्सर वाहन खराब स्थिति में होते हैं। यह केवल चालक की लापरवाही नहीं, बल्कि व्यवस्थापकों और नियामक संस्थाओं की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे सुनिश्चित करें कि एम्बुलेंस सेवाएं सुरक्षित और प्रभावी हों। कई बार निजी एम्बुलेंस संचालक लाभ कमाने के लिए मरीज की सुरक्षा को नजरअंदाज कर देते हैं। रात में खराब सड़क पर, बिना किसी सुरक्षा उपकरण या प्रशिक्षित स्टाफ के मरीज को अस्पताल पहुंचाने का जोखिम किसी भी समय घातक साबित हो सकता है। कभी-कभी यह देखा गया है कि एम्बुलेंस चालक सिर्फ तेजी में दौड़ते हैं और जीवन रक्षक उपकरणों की जांच तक नहीं करते। ऐसे हालात में मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने का प्रयास जीवन संकट में बदल जाता है। इसके अलावा, प्रशासनिक स्तर पर भी नियमों का पालन सुनिश्चित करने में कई खामियां हैं। कई शहरों में एम्बुलेंस सेवाओं के लाइसेंस और निरीक्षण की प्रक्रिया इतनी ढीली होती है कि संचालन में लापरवाही को रोकना मुश्किल हो जाता है।
यह एक गंभीर प्रश्न है कि क्या हमारे पास ऐसे तंत्र हैं जो नियमित निरीक्षण कर सकें और नियमों के उल्लंघन पर तत्काल कार्रवाई कर सकें। जब हम स्वास्थ्य क्षेत्र में एम्बुलेंस सेवाओं की स्थिति पर ध्यान देते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि केवल वाहन और चालक की बात ही नहीं, बल्कि प्रशिक्षण, चिकित्सा उपकरण, और मरीज के साथ व्यवहार की गुणवत्ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। एम्बुलेंस चालक न केवल वाहन चलाने के प्रशिक्षित होने चाहिए, बल्कि आपातकालीन स्थितियों में प्राथमिक चिकित्सा देने में सक्षम भी होने चाहिए। किसी मरीज के जीवन और मौत के बीच की क्षणभंगुर स्थिति में यह प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होता है।दुर्भाग्यवश, हमारे देश में प्रशिक्षण और योग्यता की अनदेखी की जाती है। कई बार चालक केवल ड्राइविंग लाइसेंस के आधार पर ही काम कर रहे होते हैं, जबकि उन्हें कार्डियो पल्मोनरी रेस्क्यू, प्राथमिक चिकित्सा और अन्य आपातकालीन प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित होना चाहिए। इस कमी के कारण, कभी-कभी मरीज अस्पताल पहुंचने तक ही नहीं टिक पाते। सड़क सुरक्षा और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी भी एम्बुलेंस सेवा को जोखिम में डालती है। तेज रफ्तार, लाल बत्ती की अवहेलना, ओवरटेकिंग और अनुचित ड्राइविंग ऐसी घटनाओं में योगदान देती हैं। एम्बुलेंस केवल मरीज को जल्दी पहुंचाने का साधन नहीं है, यह एक जिम्मेदारी भी है कि अन्य यात्रियों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाए।यहां तक कि तकनीकी पहलुओं में भी खामियां देखी जा सकती हैं। कई एम्बुलेंस में जीवन रक्षक उपकरण या तो खराब हालत में होते हैं या उन्हें नियमित रूप से जांचा नहीं जाता। कभी-कभी ऑक्सीजन सिलेंडर, हार्ट मॉनिटर, और अन्य आवश्यक उपकरण सही ढंग से काम नहीं कर रहे होते, जिससे मरीज की स्थिति बिगड़ सकती है। इन सब चुनौतियों के बावजूद, समाज और सरकार दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस समस्या का समाधान करें।
हमें चाहिए कि एम्बुलेंस सेवाओं के संचालन में कड़े नियम लागू किए जाएं और उनका नियमित निरीक्षण किया जाए। निजी और सार्वजनिक दोनों प्रकार की एम्बुलेंस सेवाओं को प्रशिक्षण, लाइसेंस, और वाहन स्थिति के मानक पर खरा उतरना अनिवार्य होना चाहिए। साथ ही, नागरिकों को भी जागरूक होना होगा कि वे केवल तेज और सस्ती एम्बुलेंस सेवाओं के पीछे न भागें, बल्कि सुरक्षित और प्रमाणित सेवाओं का चयन करें। इसके लिए सरकारी वेबसाइट, हेल्पलाइन और मान्यता प्राप्त सेवाओं की सूची का प्रचार होना चाहिए। एम्बुलेंस सेवा केवल वाहन और चालक का नाम नहीं है, बल्कि यह समाज की संवेदनशीलता और मानव जीवन की प्राथमिकता का प्रतीक है। नियमों की अनदेखी, लापरवाही और प्रशिक्षण की कमी इस सेवा को खतरे में डाल देती है। हमें चाहिए कि हम इस महत्वपूर्ण सेवा के प्रति गंभीर दृष्टिकोण अपनाए और सुनिश्चित करें कि कोई भी मरीज अपनी जान के लिए डरते हुए अस्पताल न पहुंचे। जब एम्बुलेंस सुरक्षित और सुचारू रूप से काम करेगी, तभी हम समाज में स्वास्थ्य सुरक्षा और मानवता के मूल्यों को सशक्त बना पाएंगे। नियमों का पालन, चालक का प्रशिक्षण, उपकरण की स्थिति, और मरीज की सुरक्षा ये सभी पहलू मिलकर ही एम्बुलेंस सेवा को जीवन रक्षक बना सकते हैं। यह केवल प्रशासन और नीति निर्माताओं की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सभी की भी जिम्मेदारी है कि हम इस सेवा के महत्व को समझें और इसे खतरे में डालने वाले तत्वों के खिलाफ आवाज उठाएं। तभी हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारी जीवनरेखा, हमारी एम्बुलेंस सेवाएं, हमें सुरक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी दें, न कि भय और खतरे की।

