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डिफेंस ट्रेनिंग से बदल रहा ग्रामीण भारत का भविष्य

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संपादकीय-

भारत के बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में एक नई आशा की किरण उन युवाओं से झलक रही है, जिन्होंने अपनी जिजीविषा और परिश्रम के बल पर आत्मनिर्भरता की नई परिभाषा गढ़ी है। यह आत्मनिर्भरता केवल नौकरी पाने तक सीमित नहीं है, बल्कि नौकरी देने और समाज को दिशा देने तक विस्तारित है। इसका सबसे सशक्त उदाहरण वे युवा हैं जिन्होंने डिफेंस एकेडमी की स्थापना कर देश की नई पीढ़ी को सुरक्षा बलों में जाने के लिए प्रशिक्षित करना शुरू किया है। इन युवाओं ने यह साबित किया है कि यदि दृढ़ निश्चय और सामाजिक चेतना हो तो सीमित संसाधनों के बावजूद भी कोई भी बड़ा परिवर्तन संभव है। डिफेंस एकेडमी के रूप में उनका यह प्रयास केवल रोज़गार का विकल्प नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय चेतना और सेवा-भावना को जागृत करने का एक सामाजिक अभियान भी है।भारत की युवाशक्ति को सदियों से राष्ट्र की रीढ़ कहा गया है। आज भी हमारे देश की आधी से अधिक आबादी युवा है और यदि उसे सही दिशा मिले तो वह किसी भी क्षेत्र में दुनिया को चौंका सकती है। सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस जैसी वर्दीधारी सेवाओं में भर्ती होना भारतीय युवाओं का सपना रहा है। गाँव-गाँव में जब सुबह कोई युवक दौड़ते हुए अपने सपनों की पगडंडी तय करता है तो उसके पीछे केवल एक नौकरी की चाहत नहीं होती, बल्कि एक जीवन दर्शन होता है जिसमें मातृभूमि की रक्षा, समाज की सेवा और परिवार का सम्मान शामिल होता है। लेकिन इन सपनों को साकार करने के लिए युवाओं को जिस प्रशिक्षण और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, उसकी कमी लंबे समय से महसूस की जा रही थी। सरकारी स्तर पर उपलब्ध प्रशिक्षण संसाधन सीमित थे और हर युवा तक नहीं पहुँच पाते थे। ऐसे में निजी स्तर पर डिफेंस एकेडमी खोलने का विचार जन्म लेता है। जो युवा स्वयं इस कठिनाई से गुज़रे, जिन्होंने प्रशिक्षण की कमी के कारण अवसर खोए या जिन्हें सही मार्गदर्शन न मिलने से निराशा मिली, उन्हीं में से कई ने यह ठाना कि आने वाली पीढ़ी को इस अभाव का सामना नहीं करना पड़े। यही संकल्प उन्हें डिफेंस एकेडमी स्थापित करने की ओर ले गया। यहाँ से आत्मनिर्भरता की यात्रा शुरू होती है, क्योंकि यह केवल व्यवसाय नहीं है, यह सेवा और समर्पण का संगम है। आज झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और देश के अनेक हिस्सों में दर्जनों युवा अपनी छोटी-छोटी डिफेंस एकेडमियों के माध्यम से न केवल स्वयं का भविष्य गढ़ रहे हैं, बल्कि हज़ारों युवाओं को उनके सपनों की ओर अग्रसर कर रहे हैं। इन एकेडमियों में सुबह की परेड से लेकर शारीरिक दक्षता की कठिन तैयारी, लिखित परीक्षा का अनुशासित अभ्यास, साक्षात्कार के लिए आत्मविश्वास का निर्माण और वर्दीधारी जीवन के लिए मानसिक दृढ़ता विकसित करने तक सब कुछ सिखाया जाता है। एक साधारण किसान का बेटा जब इन एकेडमियों से निकलकर सेना या पुलिस में भर्ती होता है तो उसके पूरे परिवार और गाँव के जीवन में नया आत्मविश्वास जन्म लेता है। युवा प्रशिक्षक जो इन एकेडमियों को चला रहे हैं, उन्होंने अपने जीवन का नया आयाम खोजा है। पहले वे केवल नौकरी की तलाश में थे, लेकिन अब वे दूसरों को नौकरी दिलाने की राह दिखा रहे हैं। यह आत्मनिर्भरता का सर्वोच्च रूप है, जहाँ व्यक्ति केवल अपनी रोटी की चिंता नहीं करता, बल्कि समाज के सैकड़ों परिवारों की आजीविका का माध्यम बन जाता है। एकेडमी खोलने वाले ये युवा स्थानीय स्तर पर नायक बन चुके हैं। गाँव के बुज़ुर्ग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और माता-पिता अपने बच्चों को उनके पास भेजने में गर्व महसूस करते हैं।यह बदलाव केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। बेरोज़गारी के अंधकार में डूबे युवाओं के बीच यह एक प्रकाशस्तंभ है। यह उन्हें बताता है कि निराशा में डूबने की बजाय यदि प्रयास किया जाए तो रोज़गार के नए अवसर स्वयं निर्मित किए जा सकते हैं। यही आत्मनिर्भर भारत का असली स्वरूप है। प्रधानमंत्री से लेकर गाँव के आम किसान तक आत्मनिर्भरता की बात करते हैं, लेकिन इसका सच्चा रूप उन डिफेंस एकेडमियों में दिखाई देता है, जहाँ युवा अपनी मेहनत से अवसर गढ़ रहे हैं।डिफेंस एकेडमी की स्थापना से एक और बड़ा सामाजिक प्रभाव सामने आता है। यह प्रभाव है अनुशासन और सकारात्मक जीवन दृष्टि का। एकेडमी से निकलने वाले अधिकांश छात्र चाहे सेना में भर्ती हों या न हों, वे अपने जीवन में अनुशासन, समय का महत्व, मेहनत की आदत और आत्मविश्वास को स्थायी रूप से अपनाते हैं। यही गुण उन्हें हर क्षेत्र में सफल बनाते हैं। इस प्रकार डिफेंस एकेडमी केवल वर्दी की राह नहीं दिखाती, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि इन एकेडमियों से महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ रही है। पहले जहाँ ग्रामीण पृष्ठभूमि की लड़कियों के लिए ऐसे अवसर दुर्लभ थे, वहीं अब डिफेंस एकेडमी के प्रशिक्षण ने उन्हें भी नए सपने दिए हैं।

अमित कुमार
अमित कुमार

 

लड़कियाँ अब सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और राज्य पुलिस में भर्ती होकर साबित कर रही हैं कि यह क्षेत्र केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। इस सामाजिक परिवर्तन का श्रेय भी उन युवाओं को जाता है जिन्होंने साहस दिखाकर इस दिशा में पहल की। हालाँकि इस पूरी प्रक्रिया में चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। एकेडमी स्थापित करने के लिए आर्थिक संसाधनों की कमी, उचित प्रशिक्षण स्थल का अभाव, उपकरणों की लागत और प्रशासनिक अनुमति जैसी कठिनाइयाँ सामने आती हैं। कई बार स्थानीय स्तर पर संदेह और विरोध का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन यही कठिनाइयाँ युवा उद्यमियों को और मज़बूत बनाती हैं। वे इन बाधाओं को पार करके समाज को यह संदेश देते हैं कि यदि लक्ष्य स्पष्ट हो तो किसी भी चुनौती को हराया जा सकता है। डिफेंस एकेडमी की बढ़ती संख्या यह भी दिखाती है कि भारतीय समाज में वर्दी के प्रति गहरी आकांक्षा है। यह आकांक्षा केवल सरकारी नौकरी के आकर्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्मान, सेवा और त्याग की भावना से जुड़ी है। एकेडमी के मैदानों में दौड़ते हुए युवा जब पसीने से तर-बतर होते हैं तो उनके भीतर मातृभूमि के लिए समर्पण की आग जलती है। यही आग उन्हें थकने नहीं देती और यही उन्हें जीवन के हर संघर्ष में सफल बनाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार और समाज मिलकर इन पहलुओं को और सशक्त करें। यदि सरकारी स्तर पर इन निजी एकेडमियों को प्रोत्साहन मिले, प्रशिक्षण स्थल और संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ, तो यह आंदोलन और व्यापक हो सकता है। इससे न केवल बेरोज़गारी घटेगी, बल्कि देश को अनुशासित, शिक्षित और देशभक्त नागरिकों की नई पीढ़ी भी मिलेगी।डिफेंस एकेडमी खोलने वाले ये युवा हमें यह सिखाते हैं कि आत्मनिर्भरता केवल एक नारा नहीं, बल्कि जीवन जीने की शैली है। जब कोई युवा अपने सपनों को दूसरों के सपनों से जोड़ लेता है, तो उसका व्यक्तित्व समाज के लिए आदर्श बन जाता है। यह वही आत्मनिर्भर भारत है जिसकी परिकल्पना महात्मा गांधी से लेकर आज के नीति-निर्माताओं तक ने की थी। इस बदलते दौर में जब तकनीकी शिक्षा और कॉर्पोरेट रोज़गार की दौड़ हावी है, तब डिफेंस एकेडमी का यह आंदोलन हमें याद दिलाता है कि देश की असली शक्ति उसकी सुरक्षा और सेवा में ही है। इन एकेडमियों से निकलने वाले युवा केवल नौकरी पाने वाले नहीं हैं, वे राष्ट्र के प्रहरी हैं। और इन्हें प्रशिक्षित करने वाले प्रशिक्षक केवल शिक्षक नहीं, बल्कि भविष्य गढ़ने वाले निर्माता हैं। इस प्रकार डिफेंस एकेडमी की स्थापना के माध्यम से युवा जिस आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर हुए हैं, वह केवल उनका व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, बल्कि यह सामाजिक जागरण का अभियान है। यह अभियान हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों के बीच भी अवसर छिपे होते हैं और यदि साहस, अनुशासन और समर्पण हो तो हर सपना साकार किया जा सकता है। आत्मनिर्भरता का यह स्वरूप जितना प्रेरणादायी है, उतना ही आवश्यक भी, क्योंकि यही वह शक्ति है जो भारत को आने वाले समय में और मज़बूत, अनुशासित और समृद्ध राष्ट्र बना सकती है।

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राज्य प्रमुख
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हंसराज चौरसिया स्वतंत्र स्तंभकार और पत्रकार हैं, जो 2017 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत स्वतंत्र प्रभात से की और वर्तमान में झारखंड दर्शन, खबर मन्त्र, स्वतंत्र प्रभात, अमर भास्कर, झारखंड न्यूज़24 और क्राफ्ट समाचार में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साथ ही झारखंड न्यूज़24 में राज्य प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (2024–26) कर रहे हंसराज का मानना है कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ को व्यवस्था तक पहुंचाने का सार्वजनिक दायित्व है। उन्होंने राजनीतिक संवाद और मीडिया प्रचार में भी अनुभव हासिल किया है। हजारीबाग ज़िले के बरगड्डा गाँव से आने वाले हंसराज वर्तमान में रांची में रहते हैं और लगातार सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक विमर्श और जन मुद्दों पर लिख रहे हैं।
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