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खेल के उजाले के पीछे छिपा अंधेरा, ड्रग्स की लत से जूझती खिलाड़ी ज़िंदगी

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खेल-

खेल मानव जीवन का वह क्षेत्र है जहाँ अनुशासन, संघर्ष, धैर्य और परिश्रम की सबसे सजीव झलक मिलती है। खिलाड़ी जब मैदान में उतरते हैं तो वे केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी जीत लोगों के मन में ऊर्जा और आत्मविश्वास भर देती है, और उनकी हार भी यह सिखाती है कि संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता। परंतु इस उज्ज्वल पक्ष के समानांतर एक गहरा अंधेरा भी मौजूद है, जिसे अक्सर छुपा दिया जाता है या नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। वह अंधेरा है खेल और ड्रग्स का रिश्ता। जब भी हम खेल और ड्रग्स की बात करते हैं, तो आमतौर पर दिमाग में प्रदर्शन बढ़ाने वाले स्टेरॉयड या डोपिंग की चर्चा आती है। लेकिन यह कहानी केवल इतनी नहीं है। असली समस्या इससे कहीं अधिक गंभीर है, और वह है नशे की लत। आज खेल की दुनिया में प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर है। एक पदक, एक ट्रॉफी या एक शानदार प्रदर्शन खिलाड़ी को रातों-रात वैश्विक सितारा बना सकता है। उसी तरह, एक गलती, एक हार या लगातार असफलता उसे गुमनामी और आलोचना के गर्त में धकेल सकती है। इस दबाव में खिलाड़ी का मनोबल बार-बार टूटता और संभलता है। बार-बार चोट लगना, लगातार अभ्यास का बोझ, खेल संस्थानों की राजनीति और मीडिया का लगातार पीछा करना खिलाड़ी के जीवन को असहज बना देता है। धीरे-धीरे यह तनाव और दबाव उन्हें मानसिक संबल की तलाश में धकेलता है। ऐसे में ड्रग्स या नशे का सहारा एक झूठा समाधान बनकर सामने आता है।नशे की शुरुआत प्रायः छोटे स्तर पर होती है। कोई खिलाड़ी नींद न आने की समस्या से जूझ रहा होता है और दवा ले लेता है। कोई दूसरे खिलाड़ी के दबाव में या साथियों की संगति में शराब का सेवन शुरू करता है। कोई तनाव कम करने के लिए गांजे या कोकीन की ओर बढ़ जाता है। प्रारंभिक चरण में यह सब एक “सहारा” लगता है, लेकिन धीरे-धीरे यह सहारा एक जाल में बदल जाता है, जिससे निकलना असंभव होने लगता है। नशे की आदत केवल शारीरिक स्वास्थ्य को ही नहीं बिगाड़ती, बल्कि मानसिक संतुलन को भी तहस-नहस कर देती है। खेल का आधार हमेशा अनुशासन और आत्मसंयम रहा है। परंतु नशे की गिरफ्त में आने पर यही आधार डगमगा जाता है। खिलाड़ी की दिनचर्या बिगड़ने लगती है, उसकी एकाग्रता कम होने लगती है और खेल के प्रति उसका उत्साह घट जाता है। यह बदलाव धीरे-धीरे पूरी टीम पर असर डालता है। खेल भावना कमजोर पड़ने लगती है और मैदान पर वह चमक खोने लगती है, जिसने कभी दर्शकों को दीवाना बना दिया था। एक समय का आदर्श नायक, युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत, जब नशे के कारण समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनता है, तो यह न केवल उसकी व्यक्तिगत त्रासदी होती है, बल्कि करोड़ों प्रशंसकों के सपनों का चकनाचूर होना भी होता है। खेल इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं जहाँ विश्व स्तर के खिलाड़ी नशे की गिरफ्त में आकर अपना करियर बर्बाद कर बैठे। कभी वे लाखों-करोड़ों दिलों की धड़कन थे, परंतु नशे की खबरों के चलते उनकी छवि धूमिल हो गई। कुछ ने पुनर्वास के प्रयास किए, परंतु अधिकांश अपनी पुरानी ऊँचाइयों तक नहीं लौट सके। यही कारण है कि नशे की समस्या केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक भी है। यह समाज के उस वर्ग को प्रभावित करती है जो खिलाड़ियों को आदर्श मानता है और उनके नक्शेकदम पर चलना चाहता है।

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    ( स्तंभकार )

भारत जैसे देश में, जहाँ खेल धीरे-धीरे व्यावसायिकता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ रहा है, यह समस्या और भी गंभीर रूप ले सकती है। यहाँ युवा पीढ़ी अपने पसंदीदा खिलाड़ियों को रोल मॉडल की तरह देखती है। यदि वही खिलाड़ी नशे की गिरफ्त में पाए जाते हैं, तो युवाओं का विश्वास डगमगा जाता है। यह न केवल खेल संस्कृति के लिए खतरा है, बल्कि समाज की उस प्रेरणाशक्ति के लिए भी, जो खेलों के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त करती है। ड्रग्स की समस्या केवल व्यक्तिगत कमजोरी से नहीं जुड़ी है। इसके पीछे एक संगठित व्यापार भी सक्रिय है। बड़े खेल आयोजनों में खिलाड़ियों तक पहुँचने वाले दलाल, अवैध दवाओं का नेटवर्क और कभी-कभी खेल प्रबंधन तंत्र की उदासीनता भी इस अंधेरे को गहराती है। नशे का व्यापार अरबों रुपये का उद्योग है, और खिलाड़ी इसकी चपेट में सबसे आसान शिकार बनते हैं। इस अंधेरे के बीच सवाल उठता है कि रास्ता क्या है। केवल सख्त कानून और दंड पर्याप्त नहीं। जरूरी है कि खिलाड़ियों को मानसिक स्वास्थ्य की सही देखभाल मिले। उनके लिए काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक सहयोग की व्यवस्था हो। प्रशिक्षण के साथ-साथ यह शिक्षा भी दी जाए कि नशा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि स्वयं में एक नई समस्या का आरंभ है। खेल संस्थाओं और सरकारों को भी यह समझना होगा कि खिलाड़ी केवल पदक जीतने की मशीन नहीं हैं, बल्कि संवेदनशील मनुष्य हैं, जिनकी भावनाएँ और मानसिक दबावों को समझना उतना ही जरूरी है जितना उनकी शारीरिक तैयारी को। खेल और ड्रग्स का यह अंधेरा पक्ष हमें चेतावनी देता है कि चमक-दमक के पीछे छिपी सच्चाई कितनी कठोर है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो नशे की यह समस्या खेलों की आत्मा को खोखला कर सकती है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि खेल केवल जीत-हार का खेल नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों का पाठ भी है। और यदि यह पाठ नशे की गिरफ्त में खो गया, तो खेल अपनी सबसे बड़ी ताकत—प्रेरणा—खो देगा। इसलिए आवश्यकता है एक ऐसी खेल संस्कृति की, जो अनुशासन और परिश्रम के साथ-साथ मानसिक संतुलन और नशामुक्त जीवन को भी सर्वोपरि माने। यही वह राह है, जो खेल को उसके वास्तविक स्वरूप में संरक्षित रख सकती है।

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राज्य प्रमुख
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हंसराज चौरसिया स्वतंत्र स्तंभकार और पत्रकार हैं, जो 2017 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत स्वतंत्र प्रभात से की और वर्तमान में झारखंड दर्शन, खबर मन्त्र, स्वतंत्र प्रभात, अमर भास्कर, झारखंड न्यूज़24 और क्राफ्ट समाचार में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साथ ही झारखंड न्यूज़24 में राज्य प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (2024–26) कर रहे हंसराज का मानना है कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ को व्यवस्था तक पहुंचाने का सार्वजनिक दायित्व है। उन्होंने राजनीतिक संवाद और मीडिया प्रचार में भी अनुभव हासिल किया है। हजारीबाग ज़िले के बरगड्डा गाँव से आने वाले हंसराज वर्तमान में रांची में रहते हैं और लगातार सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक विमर्श और जन मुद्दों पर लिख रहे हैं।
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