Ad image

माँ की कृपा से मुकदमे में होंगी जीत, वरना हार सुनिश्चित है जानिए कैसे, ज्योतिषाचार्य डॉ साकेत कुमार पाठक से आज की भविष्यवाणी

हंसराज चौरसिया
29 Min Read
राशिफल
WhatsApp Group Join Now

सेन्ट्रल डेस्क-
राशिफल

श्री संवत 2082, शक 1947, याम्यायन शोम्यगोल, शरद ऋतु का यह कालखंड विशेष महत्त्व का है। आज की आंगल तिथि 24 सितम्बर 2025 है। इस दिन तृतीया तिथि रात्रि 04:36 बजे तक रहेगी। चित्रा नक्षत्र दिन में 03:22 बजे तक रहेगा और उसके बाद स्वाति नक्षत्र का आरंभ होगा। आज का योग एन्द्र है तथा दिन बुधवार का है। राहुकाल का समय दोपहर 12:00 बजे से 01:30 बजे तक रहेगा। इस दिन उत्तर दिशा में दिशाशूल रहेगा, अतः यदि किसी को यात्रा करनी आवश्यक हो तो प्रस्थान से पूर्व धनिया का सेवन करना शुभ और कल्याणकारी माना गया है।

- Advertisement -

 

आज चन्द्रमा तुला राशि में और सूर्य कन्या राशि में गोचर कर रहे हैं। सूर्योदय प्रातः 6:00 बजे तथा सूर्यास्त सायं 6:00 बजे होगा। यह दिन देवी महात्म्य की साधना का भी विशेष अवसर है क्योंकि आज माँ चंद्रघण्टा का पूजन संपन्न होगा। देवी चंद्रघण्टा की उपासना से मन में शीतलता और स्थिरता आती है तथा सभी मनोवांछित कार्य सही मार्ग से पूर्ण होते हैं।

बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित माना गया है, इसलिए आज गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से विशेष कल्याण प्राप्त होगा। माना जाता है कि इस दिन गणेश जी की कृपा साधक को सभी विघ्नों से मुक्ति दिलाती है और मार्ग प्रशस्त करती है।

- Advertisement -

 

ज्योतिषाचार्य सह शिक्षाविद् डॉ. साकेत कुमार पाठक ने बताया कि आज का दिन आध्यात्मिक साधना, देवी-देवताओं की उपासना और आत्मसंयम के अभ्यास के लिए अत्यंत शुभ है। माँ चंद्रघण्टा की आराधना से साधक का आत्मबल प्रबल होता है, मानसिक तनाव दूर होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। विशेष रूप से जो लोग कठिन परिस्थितियों में हैं या जिनके कार्य बार-बार बाधित होते हैं, उन्हें इस दिन श्रद्धापूर्वक माँ चंद्रघण्टा और श्री गणेश जी की उपासना करनी चाहिए। इससे उनकी सभी कठिनाइयाँ धीरे-धीरे समाप्त होने लगेंगी और जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होगी।

 

🔱 श्री गणेशाय नमः 🔱‼

- Advertisement -

करोतु सा न:शुभहेतुरिश्वरी
शुभानी भदरान्याभिहन्तु चा पद:

 

 

डॉ साकेत कुमार पाठक ज्योतिषाचार्य एवं शिक्षाविद ग्राम+पत्रालय -खम्भवा, टाटीझरिया, हज़ारीबाग चलभाष-7992410277
डॉ साकेत कुमार पाठक
ज्योतिषाचार्य एवं शिक्षाविद
ग्राम+पत्रालय -खम्भवा, टाटीझरिया, हज़ारीबाग
चलभाष-7992410277

♦आज का राशिफल ⚜

 

🐏मेष
व्यापार और नौकरी के मामले में दिन अच्छा रहने वाला है। आपके द्वारा किए गए प्रयास सफल रहेंगे और इनसे अच्छे परिणाम भी प्राप्त होंगे। अगर आर्थिक मामलों में समस्याओं का सामना कर रहे थे तो अब वे भी दूर हो सकती हैं। लेकिन कार्यक्षेत्र में काम की गति थोड़ी धीमी होने से तनाव उत्पन्न हो सकता है। आपको कुछ लोगों से सावधान रहने की भी जरूरत है, अन्यथा नुकसान हो सकता है।

 

🐂वृष
आर्थिक मामलों में आपका दिन बेहतरीन रहने वाला है और भाग्य का भी साथ मिलेगा। व्यापार में त्रिपक्षीय साझेदारी करने की स्थिति बन सकती है। कारोबार का विस्तार होने से आपका मन प्रसन्न रहेगा। नौकरी करने वालों का दिन भी अच्छा रहेगा और आपको निवेश से अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। लेकिन निजी जीवन में आपको रिश्तों को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा।

 

👫मिथुन
कार्यक्षेत्र में आत्मविश्वास के साथ कोई भी काम करना आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। शांति और संयम के अपने प्रोजेक्ट पर मेहनत करने से आपको सकारात्मक परिणाम जरूर प्राप्त होंगे। लेकिन व्यवसाय के क्षेत्र में आपको अपनी इच्छा के विरुद्ध जाकर कुछ काम करने पड़ सकते हैं। कोई भी निवेश करने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार जरूर करें, अन्यथा समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

 

🦀कर्क
आपको कार्यक्षेत्र में कुछ समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में सोच-समझकर निर्णय लेने जरूरी होंगे। आपको स्वास्थ्य से जुड़ी कोई परेशानी भी हो सकती है। इसका असर कामकाज पर भी देखने को मिलेगा। ऐसे में डॉक्टर के पास जरूर जाएं और उसी के अनुसार अपनी रूटीन बनाएं। नौकरी करने वालों के दिन सामान्य रहेगा।

 

🐅सिंह
अगर कारोबार में किसी समस्या का सामना कर रहे थे तो अब स्थिति में सुधार आ सकता है। वहीं, कार्यक्षेत्र में कामकाज सामान्य चलेगा। किसी बड़े अधिकारी का सहयोग और आशीर्वाद मिलने से नौकरी में आपकी स्थिति मजबूत हो सकती है। लेकिन विरोधियों को इस बात से परेशानी हो सकती है। परिवार में खुशनुमा माहौल बना रहेगा और आपको भी सुकून महसूस होगा।

 

🙎‍♀कन्या
कार्यक्षेत्र में आपको सही और गलत लोगों के बीच में पहचान करनी होगी। अन्यथा कोई व्यक्ति आपकी अच्छाई का लाभ भी उठा सकता है। आप दूसरों की मदद करने के लिए आगे बढ़ेंगे। लेकिन इस दौरान सोच-समझकर फैसले लेना जरूरी होगा। व्यापार में भी निवेश करते समय कोई जल्दबाजी न दिखाएं, अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

 

⚖तुला
शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों को अपनी परीक्षा या किसी प्रतियोगिता के लिए तैयार रहना होगा तभी सफलता हासिल होगी। व्यवसाय या कारोबार के संबंधित को फैसला लेने या योजना बनाने वाले हैं तो उस काम को आप आगे बढ़ा सकता है। नौकरी करने वालों का दिन अच्छा रहेगा और आप अपने काम में व्यस्त रहेंगे। इसी के चलते अधिकारियों द्वारा प्रशंसा भी हो सकती है।

 

🦂वृश्चिक
कार्यक्षेत्र में कुछ काम आपकी सोच से विपरीत हो सकते हैं, जिससे मन निराश रहेगा। वहीं, किसी खास व्यक्ति से आपको धोखा भी मिल सकता है। ऐसे में सावधान रहना जरूरी होगा। लेकिन आपके कुछ काम बन भी सकते हैं, जिससे तनाव कम होगा और कोई शुभ समाचार मिलने से आपकी निराशा भी समाप्त हो सकती है। कुल मिलाकर यह दिन आपके लिए मिश्रित फलदायक रहेगा।

 

🏹धनु
अगर लंबे समय से आपके छोटे-छोटे काम बिगड़ रहे थे तो अब वे बनने शुरू हो सकते हैं। स्थिति में सुधार आने से आपका तनाव कम होगा। लेकिन किसी बात को लेकर आपके मन में डर बना रह सकता है, जो अनावश्यक होगा। ऐसे में जरूरत से ज्यादा टेंशन लेने से बचें। अन्यथा मन अशांत रह सकता है। व्यापार के मामले में भागदौड़ के बाद आपको छोटे-छोटे लाभ भी मिल सकते हैं।

 

🐊मकर
आपके बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होगी और यात्राओं के दौरान कोई जरूरी जानकारी भी प्राप्त हो सकती है। कामकाज के सिलसिले में आपकी मुलाकात कुछ अच्छे लोगों से हो सकती है, जिससे बड़ा लाभ मिलने की संभावना है। प्रियजनों की ओर से शुभ समाचार सुनने को मिलेंगे और आप किसी धार्मिक कार्य की योजना भी बना सकते हैं। आर्थिक मामलों में दिन अच्छा रहेगा।

 

🍯कुंभ
कार्यक्षेत्र में आपको अपने सभी जरूरी कार्यों को समय पर पूरा करना होगा। इसके लिए अत्यधिक मेहनत भी करनी पड़ सकती है। वहीं, कुछ अपने लोगों के चलते आपकी चिंता बढ़ सकती है। ऐसे में सोच-समझकर फैसला लेना जरूरी होगा। जल्दबाजी करने से नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। पारिवारिक माहौल शांत और सुखदायक रहेगा।

 

🐟मीन
आपके स्वास्थ्य में कुछ गिरावट देखने को मिल सकती है। वहीं, दिन की शुरुआत में कार्यक्षेत्र में कई सारे काम आपके अधूरे रह सकते हैं, जिन्हें पूरा करना आवश्यक होगा। धीरे-धीरे स्थिति बेहतर होगी। लेकिन आपके कुछ काम में रुकावटें पैदा हो सकती हैं, जिससे तनाव बढ़ने की संभावना है। ऐसे में मित्रों का सहयोग आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

 

दुर्गासप्तशती अनुष्ठान विधि!!

शारदीय नवरात्रि में माँ की उपासना के लिये🍁चंडी के अध्याय पाठन से संकल्प अनुसार कामनापूर्ति

1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिए।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने और सिद्ध करने की विभिन्न विधियाँ

 

सामान्य विधि ~~

नवार्णमंत्र जप और सप्तशती न्यास के बाद तेरह अध्यायों का क्रमशः पाठ, प्राचीन काल में कीलक, कवच और अर्गला का पाठ भी सप्तशती के मूल मंत्रों के साथ ही किया जाता रहा है। आज इसमें अथर्वशीर्ष, कुंजिका मंत्र, वेदोक्त रात्रि देवी सूक्त आदि का पाठ भी समाहित है जिससे साधक एक घंटे में देवी पाठ करते हैं।

 

वाकार विधि ~~

यह विधि अत्यंत सरल मानी गयी है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।

 

संपुट पाठ विधि ~~

किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है।

सार्ध नवचण्डी विधि~~

इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि द्वारा पाठ करते हैं। एक ब्राह्मण सप्तशती का आधा पाठ करता है। (जिसका अर्थ है- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे अध्याय में ”देवा उचुः- नमो देव्ये महादेव्यै” से आरंभ कर ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण कार्य की पूर्णता मानी जाती है। एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है। इस प्रकार कुल ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा नवचण्डी विधि द्वारा सप्तशती का पाठ होता है।

 

पाठ पश्चात् उत्तरांग करके अग्नि स्थापना कर पूर्णाहुति देते हुए हवन किया जाता है जिसमें नवग्रह समिधाओं से ग्रहयोग, सप्तशती के पूर्ण मंत्र, श्री सूक्त वाहन तथा शिवमंत्र ‘सद्सूक्त का प्रयोग होता है जिसके बाद ब्राह्मण भोजन, कुमारी का भोजन आदि किया जाता है। वाराही तंत्र में कहा गया है कि जो ‘सार्धनवचण्डी’ प्रयोग को संपन्न करता है वह प्राणमुक्त होने तक भयमुक्त रहता है, राज्य, श्री व संपत्ति प्राप्त करता है।

शतचण्डी विधि~

मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं।

 

⚜ इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो दो से दस वर्ष तक की होनी चाहिए तथा इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए। इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन के लिए वेश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा

 

‘मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।

इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषी, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्याय देवताओं का वैदिक पूजन होता है। जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है।

 

इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशीविधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (१००८) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।

 

कुछ लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।

दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री।

▪प्रथम अध्याय~ एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।

 

▪द्वितीय अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष

 

▪तृतीय अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद

 

▪चतुर्थ अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,
चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।

 

▪पंचम अध्ययाय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।

 

▪षष्टम अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।

 

▪सप्तम अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।

 

▪अष्टम अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।

 

▪नवम अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।

 

▪दशम अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।

 

▪एकादश अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।

 

▪द्वादश अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल।

 

▪त्रयोदश अध्याय~ प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।

मुख्य पाठ विधि

यह विधि यहाँ संक्षिप्त रूपसे दी जाती है। नवरात्र आदि विशेष अवसरों पर तथा शतचण्डी आदि अनुष्ठानों में विस्तृत विधि का उपयोग किया जाता है। उसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी, 50 क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओं की वैदिक विधि से पूजा होती है। अखण्ड दीप की व्यवस्था की जाती है।

 

🚩देवीप्रतिमा की अंगन्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधि के साथ विधिवत् पूजा की जाती है।

नवदुर्गापूजा, ज्योति:पूजा, वटुक-गणेशादि सहित कुमारीपूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबन्धन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन, मन्त्र – स्नान आदि, आसनशुद्धि, प्राणायाम, भूतशुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा, अन्तर्मातृकान्यास, बहिर्मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोढान्यास, विलोमन्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषाघ्घ्य, क्षेत्रकीलन, मन्त्रपूजा, विविध मुकद्राविधि, आवरणपूजा एवं प्रधानपूजा आदि का शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अनुष्ठान होता है। इस प्रकार विस्तृत विधि से पूजा करने की इच्छा वाले भक्तों को अन्यान्य पूजा-पद्धतियों की सहायता से भगवती की आराधना करके पाठ आरम्भ करना चाहिए।

 

पाठ विधि आरम्भ~

साधक स्नान करके पवित्र हो आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे; साथ में शुद्ध जल, पूजन सामग्री और श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक रखे। पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दे। ललाट में अपनी रुचि के अनुसार भस्म, चन्दन अथवा रोली लगा ले, शिखा बाँध ले; फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्व-शुद्धि के लिये चार बार आचमन करे। उस समय अग्रांकित चार मन्त्रों को क्रमशः पढ़े-

 

ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं हीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः
स्वाहा ॥

 

तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे; फिर ‘पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ०’ इत्यादि मन्त्र से कुशकी पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से

 

🔥संकल्प करे-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे
आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे (संवत्सर का नाम) अमुकायने (अयन उत्तरायण/दक्षिणायन का नाम) महामाङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे (मास) अमुकपक्षे (पक्ष का नाम) अमुकतिथौ (तिथि का नाम)
अमुकवासरान्वितायाम् (वार का नाम) अमुकनक्षत्रे (नक्षत्र का नाम) अमुकराशिस्थिते सूर्ये (सूर्य जिस राशि मे हो उसका उच्चारण) अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्र, भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनिषु (शेष सभी ग्रह उस समय जिस राशि पर हो उसका नाम लें) सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ (तिथि का नाम लें) सकलशास्त्र श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्न:
अमुकशर्मा (अपने गोत्र का उच्चारण करें) अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुग्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-
विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टि धनधान्य समृद्धयर्थं श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वा-पन्निवृत्तिसर्वाभीष्ट फलावाप्तिधर्मार्थ काममोक्षचतुर्विध पुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वती देवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गला कीलकपाठ-केदतनत्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्ण जप सप्तशतीन्यास-ध्यान सहित चरित्र सम्बन्धि विनियोगन्यास ध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः ।’ इत्याद्यारभ्य ‘सावर्णिर्भविता मनुः’ इत्यन्तं दुर्गा सप्तशती पाठं तदन्ते न्यासविधि सहित नवार्ण मन्त्र जपं वेद तन्त्रोक्त देवीसूक्त पाठं रहस्यत्रय पठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये।

इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की
विधि से पुस्तक की पूजा करे,

पूजाका मन्त्र

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता: स्म ताम् ॥
(वाराहीतन्त्र तथा चिदम्बरसंहिता)

ध्यात्वा देवीं पञ्चपूजां कृत्वा योन्या प्रणम्य
च।
आधारं स्थाप्य मूलेन स्थापयेत्तत्र पुस्तकम्॥

इसके बाद योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे, फिर मूल नवार्णमन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करे। इसके बाद शापोद्धार
करना चाहिये। इसके अनेक प्रकार हैं।

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।

इस मन्त्रका आदि और अन्त में सात बार जप करे। यह शापोद्धार मन्त्र कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है।

यह मन्त्र इस प्रकार है-
🍂 ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।

इसके जप के पश्चात् आदिऔर अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जप करना चाहिये, जो इस प्रकार है-

ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।

मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती शापविमोचन का मन्त्र यह है-

🍂ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।

इस मन्त्र का आरम्भ में ही एक सौ आठ बार जप करना चाहिये, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका शाप विमोचन मन्त्रों का आरम्भ में ही पाठ करना चाहिये। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-

👉ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्र शापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ- नारद संवाद सामवेदाधिपति ब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्म स्वरूप चण्डिका शापविमुक्तौ मम संकल्पित कार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

ॐ (ह्रीं) रीं रेत:स्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिनयै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥ १ ॥

ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुर सैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ २ ॥

ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ३ ॥

ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै
देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ४ ॥

ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥५ ॥

ॐ शं शक्ति स्वरूपिण्यै धूम्रलोचन घातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता
भव॥ ६ ॥

ॐ तृं तृषा स्वरूपिण्यै चण्ड मुण्ड वध कारिण्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद्
विमुक्ता भव॥ ७ ॥

क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै
ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ ८ ॥

ॐ जां जाति स्वरूपिण्यै निशुम्भ वध कारिण्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥९ ॥

ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भ वध कारिण्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥ १० ॥

ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥ ११॥

ॐ श्रं श्रद्धा स्वरूपिण्यै सकल फल दात्र्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता
भव ॥ १२॥

ॐ कां कान्ति स्वरूपिण्यै राजवर प्रदायै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद विमुक्ता भव ॥ १३ ॥

ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गल महिम सहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव ॥ १४॥

ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्य कारिण्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥ १५॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्य कवच स्वरूपिण्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव॥ १६॥

ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेद स्वरूपिण्यै ब्रह्म वसिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव ॥ १७॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकाली-महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः ॥ १८ ॥

इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः ॥ १९॥

एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति
यः। क्षीणं कुर्यान्न संशयः ॥ २० ॥

इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका-बहिर्मातृका आदि न्यास करे, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठों वाले यंत्र में अंगों यन्त्र में महालक्ष्मी आदिका पूजन करे, इसके बाद छ: अंगों सहित दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है। कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- ही सप्तशती के छः अंग माने गये हैं। इनके क्रम में भी मतभेद है।

चिदम्बर-संहिता में पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है।

 

किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है । उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गयी है। जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवचरूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलकरूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिये। यहाँ इसी क्रम का अनुसरण किया गया है।

 

सप्तशती-सर्वस्व के उपासना-क्रम में पहले शापोद्धार करके बाद में षडंगसहित पाठ करने का निर्णय किया गया है, अतः कवच आदि पाठ के पहले ही शापोद्धार कर लेना चाहिये। कात्यायनी-तन्त्र में शापोद्धार तथा उत्कीलन का और ही प्रकार बतलाया गया है।

अन्त्याद्यार्कद्विरुद्रत्रिदिगळ्य्यङ्केष्विभर्तवः ।
अश्वोऽश्व इति सर्गाणां शापोद्धारे मनो: क्रमः ॥ उत्कीलने चरित्राणां मध्याद्यन्तमिति
क्रमः।

अर्थात् सप्तशती के अध्यायों का तेरह- एक, बारह-दो, ग्यारह-तीन, दस-चार, नौ-पाँच तथा आठ-छ:के क्रम से पाठ करके अन्त में सातवें अध्याय को दो बार पढ़े। यह शापोद्धार है और पहले मध्यम चरित्रका, फिर प्रथम चरित्र का, तत्पश्चात् उत्तर चरित्र का पाठ करना उत्कीलन है।

 

कुछ लोगों के मत में कीलक में बताये अनुसार ददाति प्रतिगृहणाति‌ के नियम से कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी तिथि में देवी को सर्वस्व-समर्पण करके उन्हीं का होकर उनके प्रसाद रूप से प्रत्येक वस्तु को उपयोग में लाना ही शापोद्धार और उत्कीलन है। कोई कहते हैं- छ: अंगों सहित पाठ करना ही शापोद्धार है। अंगों का त्याग ही शाप है।

 

कुछ विद्वानों की राय में शापोद्धार कर्म अनिवार्य नहीं है, क्योंकि रहस्याध्याय में यह स्पष्टरूप से कहा है कि जिसे एक ही दिन में पूरे पाठ का अवसर न मिले, वह एक दिन केवल मध्यम चरित्र का और दूसरे दिन शेष दो चरित्रों का पाठ करे। इसके सिवा, जो प्रतिदिन नियमपूर्वक पाठ करते हैं, उनके लिये एक दिन में एक पाठ न हो सकने पर एक, दो, एक, चार, दो, एक और दो अध्यायों के क्रम से सात दिनों में पाठ पूरा करने का आदेश दिया गया है। ऐसी दशा में प्रतिदिन शापोद्धार और कीलक कैसे सम्भव है। अस्तु, जो हो, हमने यहाँ जिज्ञासुओंके लाभार्थ शापोद्धार और उत्कीलन दोनों के विधान दे दिये हैं ।

 

साधक अपनी सुविधानुसार ही पाठ करें पूजा पाठ तप और जपादि में भाव की महत्ता सर्वोपरि मानी गयी है इसलिये केवल भाव शुद्ध रखें।

Share This Article
राज्य प्रमुख
Follow:
हंसराज चौरसिया स्वतंत्र स्तंभकार और पत्रकार हैं, जो 2017 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत स्वतंत्र प्रभात से की और वर्तमान में झारखंड दर्शन, खबर मन्त्र, स्वतंत्र प्रभात, अमर भास्कर, झारखंड न्यूज़24 और क्राफ्ट समाचार में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साथ ही झारखंड न्यूज़24 में राज्य प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (2024–26) कर रहे हंसराज का मानना है कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ को व्यवस्था तक पहुंचाने का सार्वजनिक दायित्व है। उन्होंने राजनीतिक संवाद और मीडिया प्रचार में भी अनुभव हासिल किया है। हजारीबाग ज़िले के बरगड्डा गाँव से आने वाले हंसराज वर्तमान में रांची में रहते हैं और लगातार सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक विमर्श और जन मुद्दों पर लिख रहे हैं।
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *