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हजारों नम आंखों ने दी अंतिम विदाई, रिटायर्ड शिक्षक मो नासिरुद्दीन हुए सुपुर्द-ए-ख़ाक

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हजारों नम आंखों ने दी अंतिम विदाई, रिटायर्ड शिक्षक मो नासिरुद्दीन हुए सुपुर्द-ए-ख़ाक

झारखंड न्यूज़ 24
जामताड़ा
मनीष बरणवाल

फतेहपुर प्रखंड के खिजुरिया गांव के प्रसिद्ध समाजसेवी, शिक्षाविद और रिटायर्ड सरकारी शिक्षक मो नासिरुद्दीन उम्र लगभग 73 वर्ष का निधन इलाज के दौरान 11 नवंबर मंगलवार की दोपहर लगभग 3:00 बजे धनबाद के असर्फी अस्पताल में हो गया। वे पिछले दो महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे और लगातार इलाज जारी था। हृदय गति रुक जाने से उन्होंने अंतिम सांस ली।मंगलवार की रात उनका पार्थिव शरीर एंबुलेंस से गांव लाया गया। शव घर पहुंचते ही परिजनों और ग्रामीणों में कोहराम मच गया। वातावरण शोक में डूब गया, हर आंख नम थी। बुधवार दोपहर 2:30 बजे उनके पैतृक गांव खिजुरिया कब्रिस्तान में हजारों लोगों की मौजूदगी में उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया। नमाजे जनाजा उनके बेटे सद्दाम हुसैन ने अदा कराई। 1952 में जन्मे मो नासिरुद्दीन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर पूरी करने के बाद शिक्षण को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया। 1975 के आस पास उन्होंने सरकारी सेवा में बतौर शिक्षक योगदान देना शुरू किया। वे अपनी निष्ठा, अनुशासन और विद्यार्थियों के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे।

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करीब 38 वर्षों तक उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय सेवाएं दीं, और गांव के ही मध्य विद्यालय से सेवानिवृत्त हुए।सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने बच्चों की शिक्षा को ही अपना ध्येय बनाए रखा। उन्होंने कई वर्षों तक निशुल्क बच्चों को घर पर पढ़ाया। जब तबीयत ठीक नहीं रहती थी, तब भी गांव के बच्चे उनसे मिलने और पढ़ने आते थे। वे मानते थे कि शिक्षा इंसान को रोशनी देती है, और अंधेरे से बाहर निकालती है। पिछले 12 सितंबर को वे नहा-धोकर कुर्सी पर बैठकर कुरान-ए-पाक की तिलावत कर रहे थे। उसी दौरान किसी अतिथि के आगमन पर जैसे ही वे उठने लगे, गिर पड़े।दरअसल 14-15 वर्ष पहले उनके कूल्हे में स्टील प्लेट लगी थी, जो गिरने से जॉइंट से अलग हो गई। उन्हें तुरंत असर्फी अस्पताल, धनबाद में भर्ती कराया गया। ऑपरेशन के बाद उन्हें 2 अक्टूबर को छुट्टी मिली और वे घर लौट आए। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था 8 अक्टूबर को तबीयत अचानक फिर बिगड़ी, और उन्हें दोबारा अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। ठीक होने के बाद वे 14 अक्टूबर को फिर घर लौटे, मगर 25 अक्टूबर को स्थिति गंभीर होने पर फिर असर्फी अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने हर संभव इलाज किया, लेकिन 11 नवंबर को इलाज के दौरान हार्ट अटैक से उन्होंने हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया। वे अपने पीछे माँ पत्नी, चार पुत्र और चार पुत्रियाँ छोड़ गए हैं सभी विवाहित हैं और अपने-अपने परिवार में स्थापित हैं। ग्रामीणों के अनुसार, मो नासिरुद्दीन न सिर्फ़ एक आदर्श शिक्षक थे बल्कि गांव के मार्गदर्शक, समाज के सेवक और लोगों के हमदर्द थे।

उनके निधन से पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई। बुधवार को खिजुरिया गांव में हजारों की भीड़ उमड़ी। हर किसी की आंखों में आंसू थे और दिल में एक ही आवाज़ हमने एक सच्चा इंसान खो दिया। गांव के बुजुर्गों ने कहा कि नासिरुद्दीन जैसे शिक्षक बहुत कम मिलते हैं। उन्होंने सिर्फ बच्चों को किताबें नहीं, बल्कि इंसानियत और तहजीब भी सिखाई। मो नासिरुद्दीन सामाजिक मुद्दों पर हमेशा बेबाकी से अपनी राय रखते थे। गांव या इलाके में कोई समस्या होती, तो वे उसकी आवाज़ बन जाते। प्रशासनिक अधिकारियों तक अपनी बात पूरी शालीनता लेकिन दृढ़ता के साथ पहुंचाते थे, और समाधान होने तक प्रयास जारी रखते थे। उनके जनाजे में पाकुड़, हिरणपुर,दुमका, मसलिया, रानीश्वर, नाला, कुंडहित, पालोजोरी, सारठ, नारायणपुर, जामताड़ा, कर्माटांड़, मिहिजाम और धनबाद सहित कई स्थानों से बड़ी संख्या में लोग शरीक हुए। अंतिम विदाई के इस मौके पर पूरा खिजुरिया गांव ग़मगीन नजर आया। सबने दुआ की अल्लाह तआला मरहूम मो नासिरुद्दीन साहब की मग़फिरत फरमाए, उनके कब्र को रोशन करे, और उनके परिवार को सब्र-ए-जमील अता फरमाए।

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