सबर दंपति प्लास्टिक के नीचे रहने को मजबूर
पोटका से सुरेश कुमार महापात्र की रिपोर्ट
आदिम जनजाति समुदाय देश की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है, केंद्र और राज्य सरकार आदिम जनजाति के उत्थान के लिए संवेदनशील है। इसके लिए उनको चाहिए रोटी, कपड़ा और मकान।
मामला है पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड, टांगराईन पंचायत अन्तर्गत टांगराईन सबर टोला के सबर परिवार लूडूं सबर, गुरुवारी सबर का। जिन्होंने किसी तरह पेट भरने के लिए आहार, तन ढकने के लिए वस्त्र का जुगाड़ तो कर लेते हैं मगर प्लास्टिक की छावनी में रात बिताने को मजबूर हैं।
लूडूं सबर की पत्नी गुरुवारी सबर कहती है कि पहले वे पति लूड़् सबर एवं दो पुत्र आकाश तथा बदल के साथ पुराने मकान में रहते थे ।भारी बारिश पर छावनी के चदरे में जंग लगकर टूट जाने से वहां रहना उनके लिए संभव नहीं हुआ। फलस्वरुप वे वर्तमान सामने ही दूसरे जगह पर पुराने कंबलों का घेरा लगाकर ऊपर में प्लास्टिक का छावनी देकर रहने को मजबूर हैं जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी तो उनके लिए वहां भी रहना मुश्किल हो जाएगा। ये आदिम जनजाति के सबर दंपति सरकार से गुहार लगा रही है कि कंप -कंपी ठंड पड़ने से पहले पुराने मकान में छावनी के लिए चादरा का अभिलंब व्यवस्था करने की कृपा करें।

