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हर आरंभ में गणेश क्यों हैं प्रथम स्मरणीय?

हंसराज चौरसिया
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धर्म-

भारतीय संस्कृति का यदि कोई अदृश्य सूत्र है जो हर युग, हर काल और हर परिस्थिति में मनुष्य के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हुआ है तो वह देवताओं के प्रतीक रूपों में निहित शिक्षा है। इन प्रतीकों में गणेश जी का स्थान सर्वप्रथम है। वे न केवल देवताओं में प्रथम पूज्य माने जाते हैं, बल्कि जीवन के हर शुभ कार्य, हर मंगलारंभ और हर आस्था के उद्घोष में उनका नाम सबसे पहले लिया जाता है। यह परंपरा इतनी गहराई से हमारी संस्कृति में रच-बस गई है कि कोई भी कार्य बिना गणपति बप्पा मोरया कहे पूर्ण नहीं माना जाता। लेकिन प्रश्न यही है कि आखिर गणेश ही क्यों प्रथम पूज्य हुए। देवताओं की सभा में कार्तिकेय और गणेश के बीच हुई प्रतियोगिता की कथा हमें यही बताती है कि गणेश ने अपने माता-पिता शिव-पार्वती की परिक्रमा करके संपूर्ण जगत की परिक्रमा का बोध कराया। यह कथा भले पुराणों का आख्यान हो, किंतु इसके भीतर छिपा सत्य अत्यंत गहरा है। माता-पिता ही संसार का मूल हैं, वही जीवन के प्रथम गुरु हैं और वही संतति की पहली जिम्मेदारी हैं। इसीलिए गणेश ने यह दिखाया कि जो अपने माता-पिता का सम्मान करता है, वही संसार को जीतने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि उन्हें प्रथम पूज्य घोषित किया गया। यह प्रसंग केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि भारतीय समाज के मूल्यों का आधार है। यह हमें सिखाता है कि माता-पिता की अवहेलना करके कोई भी महान नहीं बन सकता। घर में माता-पिता की उपेक्षा कर यदि हम मंदिरों और तीर्थों की परिक्रमा करें तो यह आचरण ढोंग है। सच्चा धर्म और सच्ची पूजा माता-पिता की सेवा में है। इसीलिए कहा गया है मातृदेवो भवः, पितृदेवो भवः। गणेश जी के प्रथम पूज्य होने का तात्पर्य यही है कि जीवन की सफलता माता-पिता के चरणों की धूल से ही आरंभ होती है। गणेश जी का स्वरूप भी प्रतीकात्मक है और शिक्षाप्रद भी। उनके विशाल मस्तक से लेकर छोटे नेत्र, बड़े कान और उनके वाहन चूहे तक हर अंग जीवन-दर्शन का उद्घाटन करता है। उनका बड़ा माथा बुद्धि की विशालता और विचारों की व्यापकता का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि मनुष्य को संकीर्ण दृष्टि छोड़कर व्यापक सोच अपनानी चाहिए। जीवन केवल अपने छोटे-से घेरे तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका विस्तार परिवार, समाज, राष्ट्र और अंततः संपूर्ण मानवता तक है। गणेश जी का विशाल मस्तक हमें याद दिलाता है कि विचारों की व्यापकता ही सफलता और यश का मूल है। उनकी छोटी आँखें एकाग्रता और सूक्ष्म विवेचन का संदेश देती हैं। अर्जुन की तरह जीवन में एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। आज की भागदौड़ और विचलित करती हुई परिस्थितियों में यह शिक्षा और भी प्रासंगिक हो जाती है। गणेश हमें यह याद दिलाते हैं कि सफलता पाने के लिए ध्यान और धैर्य दोनों आवश्यक हैं। गणेश जी के बड़े कान जीवन का एक और बड़ा सत्य उद्घाटित करते हैं। जैसे सूप अनाज से भूसी को अलग करता है, वैसे ही मनुष्य को अपने जीवन में सार्थक और निरर्थक, उपयोगी और अनुपयोगी बातों को छाँटना सीखना चाहिए। हमें अधिक सुनना चाहिए, कम बोलना चाहिए। जीवन में वही सुनना और ग्रहण करना चाहिए जो हमारी प्रगति में सहायक हो और जो अनुपयोगी है, उसे मन से निकाल देना चाहिए। यही सच्चा विवेक है।उनका चूहा वाहन इस बात का प्रतीक है कि जीवन में चाहे अंधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो, चाहे बाधाएँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, हमें उनका सामना साहस और धैर्य से करना चाहिए। चूहा अंधेरे में भी रास्ता खोज लेता है और हर अवरोध को कुतरकर मार्ग बना लेता है। यही शिक्षा गणेश जी हमें देते हैं कि जीवन में कठिनाइयों से घबराकर बैठना नहीं है, बल्कि उनका समाधान खोजकर आगे बढ़ना है। गणेश जी का उदर भी यह शिक्षा देता है कि जीवन में सहिष्णुता, धैर्य और संतुलन कितना महत्वपूर्ण है। वे सब कुछ समेटे हुए हैं सुख-दुख, सफलता-असफलता, पीड़ा और आनंद। यह हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ आएँ, हमें उन्हें सहकर आगे बढ़ना चाहिए। आज के समय में जब समाज में मूल्यबोध की कमी होती जा रही है, जब युवा वर्ग भौतिकता की अंधी दौड़ में अपने संस्कारों से कटता जा रहा है, तब गणेश जी की शिक्षाएँ और भी प्रासंगिक हो जाती हैं। माता-पिता की सेवा, एकाग्रता, विवेक, साहस और सहिष्णुता यही वे मूल्य हैं जो हमें जीवन में सफलता दिला सकते हैं।गणेश चतुर्थी का उत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं है। यह समाज को जोड़ने वाला पर्व है। महाराष्ट्र से लेकर झारखंड, बिहार और उत्तर भारत तक गणपति की आराधना सामूहिकता का प्रतीक है। दस दिनों तक होने वाली पूजा और विसर्जन यह संदेश देती है कि जीवन क्षणभंगुर है, लेकिन उसके भीतर छिपा सत्य शाश्वत है। मूर्ति का विसर्जन यह सिखाता है कि जो आया है वह जाएगा, परंतु उसका संदेश, उसका ज्ञान और उसकी शिक्षा जीवनभर हमारे साथ रहनी चाहिए। गणेश जी की प्रथम पूज्यता को यदि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह हमें सामाजिक जीवन के लिए कई शिक्षाएँ देती है। राजनीति में यदि गणेश का विवेक हो, तो सत्ता का उपयोग जनता की सेवा में होगा, न कि केवल स्वार्थ की पूर्ति में। शिक्षा में यदि गणेश की एकाग्रता और धैर्य हो, तो छात्र केवल अंकों की दौड़ नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को भी आत्मसात करेंगे। परिवार में यदि गणेश का माता-पिता के प्रति सम्मान हो, तो घर-घर में संस्कार और समरसता लौट आएगी। समाज में यदि गणेश के बड़े कान जैसी सुनने की प्रवृत्ति हो, तो संवाद और समझदारी से हर विवाद का समाधान संभव हो जाएगा। आज के वैश्विक युग में भी गणेश का संदेश महत्वपूर्ण है। जब पूरी दुनिया विभाजन, युद्ध और हिंसा की राजनीति में उलझी है, तब गणेश हमें यह बताते हैं कि व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। संकीर्णता से केवल संघर्ष पैदा होता है, जबकि व्यापकता से सहयोग और शांति संभव है।

डॉ योगेंद्र मिश्रा
डॉ योगेंद्र मिश्रा

णेश जी का प्रम पूज्य होना केवल धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि जीवन का दार्शनिक सत्य है। यह उद्घोष है कि हर आरंभ में विवेक होना चाहिए। बिना विवेक के कोई भी शुरुआत अंततः विनाश का कारण बनती है। इसीलिए जब भी यज्ञ होता है, जब भी विवाह होता है, जब भी नया घर बनता है या नई दुकान का उद्घाटन होता है, तब सबसे पहले गणेश का स्मरण किया जाता है। आरंभ में यदि बुद्धि और विवेक का आशीर्वाद हो तो अंत में विजय सुनिश्चित है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी केवल हिंदू धर्म के देवता नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। उनके प्रतीक इतने सार्वभौमिक हैं कि हर संस्कृति में उन्हें समझा जा सकता है। उनका बड़ा मस्तक हर विचारक को प्रेरणा देता है, उनके कान हर श्रोता को शिक्षा देते हैं, उनका चूहा हर संघर्षरत मनुष्य को मार्गदर्शन देता है। यही कारण है कि गणेश जी भारतीय ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। गणेश जी का दर्शन यह कहता है कि जीवन का कोई भी आरंभ बाहरी विजय से नहीं, बल्कि आंतरिक विजय से होता है। गणेश ने कार्तिकेय की तरह संसार की परिक्रमा नहीं की, उन्होंने माता-पिता की परिक्रमा की। उन्होंने यह दिखाया कि बाहरी जीत से पहले आंतरिक जीत आवश्यक है। जब तक हम अपने परिवार, अपने संस्कार और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान नहीं हैं, तब तक संसार की विजय भी व्यर्थ है। यही शिक्षा उन्हें प्रथम पूज्य बनाती है। अंततः, गणेश जी का प्रथम पूज्य होना मानवता के लिए एक शाश्वत संदेश है। यह हमें यह बताता है कि जीवन में विवेक, भक्ति, साहस, धैर्य, सेवा और संस्कार सबसे महत्वपूर्ण हैं। यही वे मूल्य हैं जो मनुष्य को महान बनाते हैं। गणेश जी का नाम लेते हुए जो भी कार्य आरंभ होता है, वह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि इन मूल्यों को आत्मसात करने का उद्घोष है। इसलिए गणेश जी केवल देवता नहीं, बल्कि मानवता के प्रथम मार्गदर्शक हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि यदि जीवन में आरंभ विवेक से होगा, तो अंत निश्चित ही विजय से होगा। यही गणेश जी की प्रथम पूज्यता का शाश्वत सत्य है।

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राज्य प्रमुख
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हंसराज चौरसिया स्वतंत्र स्तंभकार और पत्रकार हैं, जो 2017 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत स्वतंत्र प्रभात से की और वर्तमान में झारखंड दर्शन, खबर मन्त्र, स्वतंत्र प्रभात, अमर भास्कर, झारखंड न्यूज़24 और क्राफ्ट समाचार में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साथ ही झारखंड न्यूज़24 में राज्य प्रमुख की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। रांची विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (2024–26) कर रहे हंसराज का मानना है कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ को व्यवस्था तक पहुंचाने का सार्वजनिक दायित्व है। उन्होंने राजनीतिक संवाद और मीडिया प्रचार में भी अनुभव हासिल किया है। हजारीबाग ज़िले के बरगड्डा गाँव से आने वाले हंसराज वर्तमान में रांची में रहते हैं और लगातार सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक विमर्श और जन मुद्दों पर लिख रहे हैं।
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